खलनायिका

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जैसे जैसे महाराज सोम के पद आगे बढ़ रहे थे, वैसे वैसे हिमा के हृदय की गति भी बढ़ती जा रही थी। वह चिंता में अपने मुख पर एक सीधा विस्तार लिए आखें बड़ी बड़ी करके खड़ी थी, और महाराज को हर एक बीतते क्षण में, अपने मुख पर एक सीधा विस्तार लिए और गंभीर दृष्टि के साथ अपने और करीब आते हुए देख रही थी।

महाराज सिंहासन के आगे वाले सीढ़ियों के समक्ष पहुंच गए, और अब उन्होंने अपना प्रथम पद , सीढ़ियों के प्रथम सोपान पर रखा, हिमा अंदर से कांप उठी। "क्या ये आज ही हमारा सर धर से अलग कर देंगे????" हिमा ने घबराहट में सोचा।

महाराज ने दूसरा पद रखा। "क्या ये हमारा सर काट कर उससे गिल्ली डंडा खेलेंगे????" हिमा ने घबराहट में सोचा।
तीसरा पद रखा। " नहीं हमारा सर उतना भी छोटा नहीं, तो फिर क्या हमारे सर को बच्चो के गेंद बना के खेलने के लिए दे देंगे?????"
चौथा पद रखा। और फिर महाराज वही हिमा के समक्ष रुक गए। एक क्षण शांत रहे जिससे हिमा ने घबराहट में स्वयं को मृत तो मान ही लिया था। परंतु तब ये हुआ, की महाराज सोम तो हिमा की ओर देख कर मुस्कुराने लगे।

"क्या??? विश्वास नहीं होता!! महाराज हमारा उपहास बनाएंगे??" हिमा ने अचंभा में सोचा।

और हिमा ने ऐसा इसलिए सोचा, क्योंकि जब भी महाराज सेवक के रूप में हिमा से मिल जाते थे, तो हिमा का उपहास बनाते समय ऐसी ही मुस्कान देते थे।

महाराज मुस्कुराए, हिमा के दाहिने कान की ओर थोड़ा सा झुके, और हिमा को हल्के से कहा,"आप ऊपर खड़ी हैं, और हम सीढ़ियों के दूसरे सोपान पर हैं, तभी भी, आपसे वार्ता करने लिए हमे झुकना पड़ रहा है। इच्छाधारी होने का क्या लाभ, जब आप अपना कद ही नहीं बढ़ा पाई?? छोटी राजी जी??"

महल में सबने महाराज को छोटी रानी हिमा के कान में कुछ कहते हुए देखा। सभी एक दूजे को देख मुस्कुराने लगे, सोचने लगे कि कदाचित महाराज हिमा की प्रशंसा कर रहे होंगे, इतनी अच्छी जो दिख रही है हिमा!! पहली और तीसरी रानी भी महाराज और हिमा को देख, मुस्कुराने लगे। परंतु दूसरी रानी कुछ विशेष प्रसन्न नहीं लग रही थी। मानो उन्हे महाराज को छोटी रानी के संग नहीं बांटना।

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