आशा

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बादल घने भले घेरे हो
किरण सूरज की कभी तो उन्हें चिरेगी

ज़मीन चाहे कितनी भी बंजर हो
एक बूँद पानी की कभी तो निकलेगी

ज़मीन के अंदर अँधेरे में  है जो बीज़
उसमें कलियाँ भी तो कभी निकलेंगी।

समुद्र चाहे कितना भी विशाल हो
किनारे उसके भी कहीं तो होंगी।

दुखो के साये कितने भी घने हो
खुशियों के पल कभी तो जन्मेंगी।

चाँद अँधेरे में भले न निकले
जुगनू का सहारा कहीं तो मिलेगी।

आशा की एक किरण भी हो
तो ये अंधेरी रात भी अवश्य मिटेगी।
->सानिया❤️

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