तुम भी नही, मैं भी नही

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खामियाँ तो है हर किसी में,
सम्पूर्ण तो मैं भी नही, तुम भी नही
ना ज़मीं पा सका आसमां को, ना आसमां को ही मिली ज़मीं।

सागर बड़ा है विशाल फ़िर भी,
कमी रह गई मिठास की।
नदियों में घुल गई मिठास मगर,
कमी है तो बस फैलाव का।

अनंत अद्भुत दृश्य धरा के,
देख ना पाए तरूवर।
बीत जाए ज़िन्दगी पुरी,
एक ही स्थान पर खड़े रह.कर।

गौर से ढ़ूँढ़ो अगर तो,
मिल जाएगी एक न एक, खामियाँ यहाँ हर किसी की।
अधुरा तो हर कोई है यहाँ,
पूरे तो तुम भी नहीं, मैं भी नहीं।

------saniya❤️

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