.82. वह, एक काला सा कौआ

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हवा में अपने पर फैलाए
बैठा था वह वहां
मुंह में अपने निवाला दबाए
देख रहा था जहान

सामने उसके था ढलता सूरज
अंबर को लगा रहा था अाग
नीचे उसके बिखरी थी सड़के
जिस पर लोग रहे थे भाग

न देख रहे थे वो कुदरत का करिश्मा
न देख रहे थे उसकी ओर
बस भाग रहे थे इधर उधर
बदलने अपने किस्मत की डोर

उन सभी बौखलाहटो से परे
शान से बैठा था वह काला सा कौआ
बादलों से भरे आसमान के मंच पर
वह था बस एक काला सा धब्बा

काली थी चोंच
काले थे पंख
मगर दिल के उस भाग पर
बिखरे थे कुछ अलग रंग

उसकी काली शान को फीका करने
कुदरत ने मिलाया था थोड़ा सफेद
ध्यान से देख ए लालची इन्सान
यही है उसमें और हम में भेद

न है उसकी आँखों में लालच
न ही आसमान को छूने की आस
वो तो बस लौटना चाहे
शाम को अपने बच्चों के पास

सूरज की आखिरी किरणों के साथ
गुम हो गया वह अंधेरे में
छोड़ गया मेरे लिए कुछ खयाल
बस गया मेरे शब्दों में

वह, एक काला सा कौआ

Rhyming RhythmsWhere stories live. Discover now