अपनी हद

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अपनी हद में रहकर भी मै हद पार कर गया,
हाय!रब्बा!मैं ये क्या कर गया,

थोड़े से अच्छे कर्मो से ही तो इंसान बना था,
थोड़ा बूरा कर बैठा ये क्या कर गया,

वो रौशनी समझती रही मुझे जन्नत की,
मैंने अंधेरे समा लिए खुदमे ये क्या कर गया,

उन आंखों ने सदा प्यार ही किया मुझसे,
मैं उन्हें गुस्सा कर बैठा ये क्या कर गया,

काश! एक मौका दे देती तो समझा लेता उन्हें,
बिना कुछ सुने ही मुंह फेर लिया ये क्या कर दिया,

पास-पास रहकर हंसते-मुस्कुराते कटा अबतक का सफर,
मुझसे खुद को दूर कर लिया ये क्या कर दिया,

छोटे से दर्द के बदले नींद चैन छीन लिया मुझसे,
मुझसे मेरा तन लेे लिया ये क्या कर दिया,

                            _अंकित सिंह हर्ष




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