सोच

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अंधे को अंधा कहकर चिढ़ा दिया मैंने,
जहर में थोड़ा नमक मिला दिया मैंने,

झूठी चमक से रौशन करने चले थे मेरे कमरे,
एक दीपक जलाकर उन्हें तिलमिला दिया मैंने..

                                _ankit singh harsh

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