#शायरी

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चेहरे की हंसी कहां बता पाई उनको,
अंदर कितना सुलग रहा था मैं,
जिस प्यार को उन्होंने गलती माना,
उसे कर कितना जल रहा था मैं...

आज भी शाम टटोलते हुए बित गई,
अंदर कितना पिघल रहा था मैं,
बाहर से खुशी का चादर ओढ़े ,
अंदर से कितना जल रहा था मैं,
                      _अंकित सिंह हर्ष

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