एहसास सम्हालते नहीं....
ये हर रोज तुझसे मिलने को बेलगाम होती है......
समझते तो नही हो तुम....
तमाशा बनता है मेरे इश्क़ का.....
और जैसे तेरी ही गली में......
ये हर रोज नीलाम होती है....
कोशिस एक आरज़ूए चाहत ....
हर दिन नाक़ाम सी होती है....
तेरे ही इश्क़ में जैसे ये.....
हर रोज सरेआम सी होती है....
फिरभी हमारी ख़ुशी का.....
ठिकाना नहीं होता.....
जब तेरी ही गली में.....
मेरी अब हर शाम होती है....
एहसास सम्हालते नही ....
तुमसे मिलने को ये अब बेलगाम जो रहती है...
17 May 2018.
A$***