हमारा मिलना कोई इतेफाक तो नहीं ,
हक़ीकत में हो तुम ,
या मेरा तुम कोई ख्वाब तो नहीं ,
साजिश थी तुझे छिपाकर रखने की मुझसे ,
कहीं तू उस खुदा का ,
कोई हसींन राज़ तो नहीं ,
हां खोई रहीं धड़कनें इस दिल की ,
कहीं तू इसकी वो आवाज तो नहीं ,
पूछा करते थे खुद से जो सवाल ,
कहीं तू मेरे सवालों के जवाब तो नही ,
ज़ज़्बात अधूरे रहे पन्नों पे मेरे ,
कहीं तू उन लफ्ज़ों के एहसास तो नही ,
और हां मिलना तय था लकीरों में ,
तुम मेरी तकदीर थी ,
मुक़द्दर का कोई इतेफाक तो नही ,
5 September 2018
A$***