वो हर खताएं माफ कर देती है,
जब उलझ जाती है खुद में,
वो रोते रोते मुस्कुरा देती है,
थोड़ी पागल है,
मगर ज़िन्दगी जीने का
सलीका वो जानती है,
वो हसा करती है बेवजह,
पूछो तो वजह मुझे बताती है,
वो थोड़ी ज़िद्दी है समझदार है,
पर रूठ जाऊ तो मुझे मानती है,
और सम्भाल रखा है उसने बचपने को खुद में,
मानों जैसे जन्नत से गंगा उतरती है,31 May 2019
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