वो हुड़ तो नहीं मगर,
खुदा की नायाब कारीगरी है,
वो पहली तो नहीं मगर ,
किसी शायर की नज़्म आखिरी है,
खोई खोई वो खुद में डूबी ,
अपनी खामोशी से जैसे बातें करती है,
और टकरा जाती है बेबाक किनारों से,
जैसे वो खुद को कोई लहर मानती है,
वो.. वो निखर जाती है और भी,
जब दर्द छिरककर वो मुस्कुराती है,
हां वो कोई हुड़ तो नहीं,
पर वो खुदा की चाहत पहली,
और ख्वाहिश भी आख़िरी है,
14 March 2019
A$***