Dekha Hai***..!

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मैंने रात के अंधेरों में ,
ख्वाबों को टूटते देखा है ,
मैंने सुबहों के उजालों में ,
रोज एक नई उम्मीद को निकलते देखा है ,
रोया करते थे जो चुपके से ,
मैंने उनको भीड़ में भी मुस्कुराते देखा है ,
बेफिक्र रहते थे जो उम्र भर ,
मैंने रात भर उनको ,
किसी के लिए सिरहाने बैठे देखा है ,
डरा करते थे जो अंधेरो से ,
मैन उनको भी ज़िन्दगी से लड़ते देखा है ,
मैंने लोगों को साँसों के साथ मरते ,
और लफ्ज़ो में ज़िन्दगी जीते देखा है ,
4 july 2018

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