जज़्बात कोरे कागज़ पे,
कहां सम्भल पाते है,
दरियां पलकों पे तेरे वास्ते,
कहां ठहर पाते है,
रह जाते है बाकी हर एहसास जताने को,
इश्क़ है उनसे कितना,
वो तीन लफ़्ज़ों में,
पूरे कहां नज़र आते है,
एहसास मेरे है उनसे जुड़े,
ये जज़्बात बस वहीं जानते है,
और ख़ाब रखते है उनका हम,
जैसे काली आसमां में हजारों सितारें,
दुआ में बस इक चांद को मांगते है,
28 April 2019***
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