तेरे इश्क़ की चाह में ,
मैं खुद को तुझमे भुलाये बैठा हूँ ,
कहा नही है तुझसे मगर ,
तुझको तुम्ही से चुराए बैठा हूँ ,
और नादानी है जो ये मेरे इश्क़ की ,
तुझे मैं कब का अपना बनाये बैठा हूँ ,
ना जाने हूँ अब किस दुनिया मे ,
मैं अपनी दुनिया ही ,
तेरी दुनिया मे मिलाये बैठा हूँ ,
अब नींद भी कहाँ आती है मुझे ,
तेरी ज़ुल्फो के साये में ,
मैं अपनी रातो को गुमाये बैठा हूँ ,
और जो कभी सामने बैठो तुम तो ,
बिन पिये ही जैसे होश गवाएं बैठा हूँ ,
साथ हो ना हो तुम मेरे उम्र भर क्या गम है ,
तुमको बिन बताये ही ,
तुमको हमसफर बनाये बैठा हूँ ,
तेरे इश्क़ की चाह में ,
मैं खुद को अब तुझमे भुलाये बैठा हूँ ,