Chapter -1

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दरवाजे की तेज़ चरमराहट से सिया की नींद से बोझिल आंखे पूरी तरह से खुल गई ..!

वो डर कर दीवार के साथ पीठ
टिका कर बैठ गई ! उसके हाथ पीछे बंधे हुएं थे

उसके हाथों की कलाइयों में भी बहुत दर्द हो रहा था !
सिया ने दरवाजे की तरफ़ देखा.. दरवाजे पर एक शख़्स खडा था..!
उसके मुंह पर नक़ाब था ! और उसके हाथों पर दस्ताने थे..! वो खाने की प्लेट लेकर थोड़ा झुका और ज़ोर से प्लेट सिया की तरफ खिसका दी.!

सिया डर कर दीवार के साथ चिपक गई खाने की प्लेट की तरफ तो सिया ने देखा भी नही...!

तभी वो नकाबपोश बोला...खा लेना इस बार.. नही तो मुझे खिलाना आता है !

तभी उसने सिया के पास आकर सिया के हाथ खोल दिए,और बाहर जाने के लिए दुसरी तरफ मुड़ा...

इसी वक़्त का इंतज़ार तो कर रही थी सिया... जैसे ही वो शख़्स पलटा सिया ने फुर्ती से उठ कर उसको जोर से धक्का दे दिया ... और खुद तेजी से दरवाजे की तरफ भागी....
वो शख़्स दीवार की तरफ सर के बल गिरा ...!

सिया ने दरवाजे के बाहर आ कर देखा सामने एक  लम्बी सी लौबी थी, रोशनी बहुत कम थी .. सिया भागती हुई लौबी के अंत तक आ गई !
दोनों तरफ दो दरवाजे थे ! सिया को समझ ही नही आया कि वो किस दरवाजे की तरफ़ पहले जाये ! फिर भी वो दाएं दरवाजे की तरफ तेजी से मुड़ी.. दरवाजे के अन्दर दाखिल होने के उसने देखा कि वो एक छोटा सा कमरा था ! उसने चारो तरफ़ नज़र दौड़ाई तो उस कमरे के दुसरी तरफ निकलने का कोई दुसरा रास्ता नही था !
तो सिया ने सोचा शायद बाईं तरफ़ जो दरवाजा है उस तरफ़ होगा रास्ता बाहर निकलने का !

वो बिना एक पल गंवाए बाएं दरवाजे की तरफ लपकी और तेजी से उस दरवाजे से अन्दर दाखिल हो गई ! सिया ने चारो तरफ नजर दौड़ाई और बुरी तरह से चौंक गई... क्योंकि वो भी एक कमरा ही था लेकिन उसके भी दुसरी तरफ निकलने का कोई रास्ता नही था !
सिया सोचने लगी कि जब लौबी के अंत तक कोई रास्ता नही बाहर जाने का और ये दो कमरे आमने सामने बने है इनमें भी कोई रास्ता नही बाहर जाने का तो वो शख्स आया कहां से अन्दर ?

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