ख़ामोशी - a Hindi poem by @Nablai

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ख़ामोशी

By Nablai



मेरी ख़ामोशी को कभी ख़ामोशी से सुन

उसमे है एक अलग सी धुन,

कई तरंगें हैं ईसकी

और कई अनकहे गम I


कभी बाते करती हूँ अकेली

आहें सिसकी हुई सारी,

दिल टूटा फिर से मेरा

तनहा, अकेला I


कहाँ जाऊं मैं

बिखरी हैं यादें,

किसे बताऊँ मैं

टूटे हैं वादें I


ज़िन्दगी किस मोड़ पर खड़ी

मेरे आँखें है भरी,

दिखता नहीं कुछ भी

धुंधला सा है जहाँ I


मैं अपना रस्ता

तन्हाई में चलूंगी,

छाले पैर पर हैं बहुत

वक़्त का नहीं कोई सुद,

बस राह है सामने

हम पार करेंगे फासले I

Tevun-Krus #75 - International 4: SolarPunkWhere stories live. Discover now