31. बिछड़े तो

5 2 0
                                    

अबकी बार हम बिछड़े तो
शायद ख़्वाबों में बातें होंगी !

मैं पूछूँगी तुमसे - कैसे हो?
तुम बेझिझक कहोगे - ठीक हूँ !
मैं शायद एकबार को भूल जाऊ
उन बीतें नमकीन बातों को मगर ,
तुम्हारी यह बेरूखी फिर याद दिलाएगी ;
मैं तुम्हारी नहीं.

तुम मुँह फेर ही लोगे शायद
की मैं फिर पूछूँगी -
तुमने नहीं पूछा मैं कैसी हूँ ?

तुम एक लम्बी सी साँस लेकर
शायद जल्दबाज़ी में पूछोगे - अच्छा
बताओ कैसी हो ?

यकीन है मैं कहूँगी - ठीक हूँ !
मगर दरखास्त है ,
यकीन न करना !
बस एक बार उन तरसती निगाहों की और देखना
मैं आज भी वही हूँ !
जहाँ तुम मुझे छोड़ गए थे ..

तुम कहोगे - चलो चलता हूँ !
मगर दो पल और रुक जाना
उन कुछ लम्हों में मैं बस तुम्हे देखूँगी
शायद मन भर जाये !
शायद कुछ और दिन जी लूँ !

शायद हाथ थाम लू तुम्हारा और...
और कहुँ की क्यों नहीं तुम मेरे हो ?
जब इस प्यार में ले डूबना ही था तो
शिकारे पर सवार तुम
उस घाटी क्यों चल दियें ?
फूल में महक तो यहाँ भी थी !

तुम्हारे उँगलियों से अपनी उंगलियां
यो लपेटकर साथ चलना था
मगर इतनी बेवफाई क्यों ?
कि मझधार यो तितली बन उड़ गए?

अबकी बार हम बिछड़े तो
बातें ख़्वाबों में ही होंगी !
सवाल रह जाएंगे यहीं
और जवाब में बस तन्हाई ...

Syaahi !जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें