19.क़बूल नहीं !

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शायद वह एहसास तुम्हे क़बूल नहीं !
मेरे दिल में जगह मंज़ूर नहीं !
इश्क़ की तुम्हे चाह नहीं !

मगर क्या तुम्हे जस्बातों की कद्र नहीं ?
मेरे गुज़रते हालातों की फ़िक्र नहीं ?
प्यार न सही ,
क्या दोस्ती की भी मंज़ूरी नहीं ?

कस्मों-वादों की होर नहीं !
साथ चलने की भी ज़ोर नहीं !
बस तुम्हारे होने की चाह है जानब
क्या मेरी इस आरज़ू का भी मोल नहीं ?

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