3.इबादत

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उनसे बातें हुई कहाँ ?
और हम करने लगे शिकायत !
उम्मीद तो ज़रूर थी हमें मगर ,
फीकी पड़ी इबादत !
कुछ लफ़्ज़ों में कमी रही ,
कुछ उनके दिल में ,
जगह तो काफी थी ,
पर रहना था उनके दिल में! 
इश्क़ तो निगाहें ज़ाहिर कर रही थी ,
ना जाने क्यूँ उनतक पहुंची नहीं !
जान हमारी जा रही थी ,
ना जाने क्यूँ उनके आते ही ठहर गई !

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