12.मौत के इस डेरे में

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मौत के इस डेरे में चल रहा गम का नगमा है ,
न जाने क्यू फिर भी धर्म पर चल रहा यह दंगा है..
जीवन पर आए इस केहर की यह रैना है,
न जाने क्यू फिर भी दिलो में शंका का यो पेहेरा है..

नब्ज़ थमने को आए पर,
ज़हन में दौड़ रहा एक ही सवाल है ..
हिन्दू मुस्लमान के जंग में जीत रहा,
महामारी का बुना यह जाल है ..

अग्निपथ के सीख को भुला रहा समाज है,
भय के इस भेष में, फैल रहा अंधकार है ..
मंदिर ,मस्जिद ,गिरजाघर में बट रहा ,
यह हमारा हिंदुस्तान है !

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