15.दिल मेरा नादान था!

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अनजान थी मैं उन राहों से,

जिसपर चलना माकूल न था !

एहसासों के तले दबा हुआ वह ,

कम्बख्त दिल मेरा नादान था!

होश न थी की वह है इतना नाज़ुक ,

की राहों के काटों से ,

कोई शिकवा न था !

अनजान थी मैं उन राहों से,

जिसपर चलना माकूल न था !

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