18. समझो

34 4 0
                                    

मेरे खामोशियों में छिपी बातों को समझो ,
मेरे अलफ़ाज़ नहीं जस्बातों को समझो ,
मेरे हरकत में घुले झिझक को समझो ,
मेरे दिल में मेहफ़ूज़ उस डर को समझो!

महफ़िल के इस खौफ में झुलसे ,
इस शक़्स को समझो !
अब मेरे शब्दों को नहीं ;
मेरे रूह को समझो !

मेरे नज़रों में बहती इश्क़ को समझो ,
लव्ज़ों में ढलते अश्कों को समझो ,
अब रेत से फिसलते मेरे सब्र को समझो ,
बस मुझमें बसे इस एहसास को समझो !

Syaahi !जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें