तुम यादों में हो, लफ़ज़ोन की ज़रूरत नहीं!
अल्फ़ाज़ों में बया ना की क्योकि
इश्क़ के इज़हार की तुम्हे चाह नहीं!
तुम्हारे उन हसीन इबादत का इंतज़ार नहीं !
चाह तो है मुझे तुम्हे पाने की मगर
तुम्हारे इंकार से कोई गिला नहीं!
जूनून ए इश्क़ तो दुआ थी मेरी
इसमें शामिल ना होना हो तुम्हे, तो हम बेवफ़ा नहीं!
एक तरफ़ा इश्क़ की है हमने
अब इस सूनेपन में भी हम तन्हां नहीं!***
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Syaahi !
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