जानकार भी तुम अनजान बनते हो!
मानकर भी इंकार करते हो!
हाथ मेरी और पहेली दफा तुमने बढ़ाया था मगर ,
साथ छोड़ना भी तुम्ही सिखाते हो!
रिश्ता तो पहले भी था और अब भी है मगर,
जानकार भी तुम अनजान रेहने का ढोंग करते हो !
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Syaahi !
Poetry#Ranked 2 in wattycontest Collection of Hindi poetry and shayaris! words and language, feelings or emotions said or unsaid better inked ! Emotions inked into words ! hope you like my collection of Hindi poetries !