अध्याय 4 (भगा 3)

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तीर्थ इन्द्रजीत और लव को उस झरने के पीछे बनी एक गुफा में ले गया। बाहर से कोई भी नहीं बता सकता था कि झरने के पीछे एक छुपी हुई गुफा भी हो सकती है। उस गुफा में बहुत सारे लोग रह रहे थे। कुछ बुढ़े, कुछ जवान तो कुछ छोटे बच्चे। करीब साठ से ऊपर लोग थे।

इन्द्रजीत और लव के गुफा में घुसते ही लोगों में हलचल सी हो गयी। अनजान लोगों को गुफा में देख छोटे बच्चे भयभीत हो चुके थे। वे अपने माता-पिता से लिपट चुके थे। तीर्थ ने उन्हें समझाया कि उन्हें उनसे डरने की आवश्यकता नहीं।

"युवराज, पूरे जगतपुर में केवल इतने ही लोग जीवित हैं। यदि कोई हल नहीं निकाला गया तो हम सब का अधिक समय तक जीवित रह पाना असंभव है।" तीर्थ ने कहा।

छोटी सी गुफा में इतने सारे लोगों को रहते देख लव को बुरा लगा, "कुमार हमे जल्द ही कुछ करना होगा, अन्यथा..."

"इन्हें कुछ नहीं होगा। मैं वचन देता हूं। यदि अपनी जान भी न्यौछावर करनी पड़े तो संकोच नहीं करूंगा।" इन्द्रजीत ने दृढ़ निश्चय किया।

तीर्थ ने सिर झुकाकर आभार व्यक्त किया। वह गुफा में रह रहे लोगों की ओर मुड़ा और उन्हें बताया कि वे सब अपने सामने सवर्ण लोक के युवराज को देख रहे थे। बस इतना सुनते ही हलचल और भी बढ़ गयी। लोग आपस में फुसफुसाने लगे। तभी उनमें से एक बुढ़ा व्यक्ती आगे आया। उसने उन्हें प्रणाम किया।

"युवराज, यह अमरनाथ जी, जगतपुर के मुखिया।" तीर्थ ने बताया।

इन्द्रजीत ने प्रणाम किया। फिर लव ने।

"हम सब चकित है कि सवर्ण लोक के युवराज हमारे यहाँ पधारे किंतु अफसोस है कि हम आपका हार्दिक स्वागत नहीं कर पाए। हमे क्षमा करें, युवराज।" अमरनाथ ने कहा।

"ये आप क्या कह रहे हैं। मुझे दुख हुआ यहाँ की स्थिति देख कर किंतु खुशी है कि आप सब सुरक्षित है।" इन्द्रजीत ने उत्तर दिया। वह मुस्कुराया। बस फिर क्या था। उसकी मनमोहक मुस्कराहट देख कर सबका मन शीतल हो उठा। बच्चे तुरन्त उसकी ओर भागे और उससे लिपट गए।

लव और तीर्थ एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए।

दूसरी ओर अर्जुन को उस आदमी ने ज़ंजीर से मुक्त कर दिया था। वह एक लकड़ी के बिस्तर पर बैठा फल खा रहा था। मधुबाला उसके सामने बेहोश पड़ी थी। अर्जुन उसे होश में लाने की तरकीब सोच रहा था। वह आदमी उनके सामने नीचे धरती पर बैठा था।

"इन्हें कब होश आएगा?" उसने पूछा।

"जल्द ही।" उसने कुछ सोचा और फिर कहा, "मुझे जल की आवश्यकता है।"

वह आदमी तुरंत खड़ा उठा और अर्जुन को जल लाकर दिया। "ये लीजिए।"

अर्जुन ने थोड़ा सा जल मधुबाला पर छिड़का किंतु वह अभी भी नहीं उठी। फिर उसे एक औषधि याद आयी जो उसने हंसराज को एक बार बनाते देखी थी। वह तुरंत उठ खड़ा हुआ और उस आदमी को सारी सामग्री बताने लगा। वह आदमी भागकर बाहर गया और सारी जड़ी-बूटियों ले आया जो अर्जुन ने उसे लाने को कहीं थी।

अर्जुन ने स्मरण कर करके वह औषधि तैयार की। "हे ईश्वर ये औषधि काम कर जाय।" उसने प्राथना की और मधुबाला को वह औषधि पिला दी। वह काम कर गयी और कुछ ही क्षण में मधुबाला उठ गयी। अर्जुन खुशी के मारे हंस पड़ा।

रात हो चुकी थी और इन्द्रजीत को अर्जुन की फिक्र होने लगी, "यदि उन्हें कुछ हो गया तो..." वह घबरा रहा था। उसने इस चिंता में एक मटका जल समाप्त कर दिया था।

"युवराज, क्या हुआ?" लव ने प्रश्न किया।

"कुछ नहीं..." इन्द्रजीत ने बात टाल दी। किन्तु लव तो सब जनता था। वह मन ही मन हसने लगा।



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