कुबेर कश्यप अपने सैनिकों के साथ गुफा में पहुँच चुके थे। इन्द्रजीत को देखकर ही वह सब घुटनों के बल झुक गए और अपने सिर झुका लिए। इन्द्रजीत ने कुबेर को उठने को कहा। कुबेर ने अर्जुन को सिर झुकाकर प्रणाम किया।
"सेनापति, आपको कैसे पता चला हम सब यहाँ है?" अर्जुन ने पूछा।
"कुमार, हम बस झरने पर आराम के लिए बैठे थे कि तभी मेरी नजर झरने के पीछे पड़ी और मुझे ये गुफा दिखाई पड़ी। मैं तीन वर्ष पहले यहाँ आया था महाराज की आज्ञा से, तब मैं और मेरे साथी यही ठहरे थे।" कुबेर ने उत्तर दिया।
लव और तीर्थ भी वहाँ पहुँचे। लव ने कुबेर को देखकर प्रणाम किया। "सेनापति जी।"
"हमें आज रात्रि यही गुजरनी होगी। कल सुबह होते ही हमे जगतपुर का समाधान अति शीघ्र निकालना होगा।" कुबेर ने कहा।
"किन्तु यदि हम अंधेरे में सिर कटी चुड़ैल को ढूँढे तो उसके मिलने की संभावना अधिक है।" अर्जुन ने उत्तर दिया।
"कुमार अर्जुन ठीक कह रहे हैं।" इन्द्रजीत ने कहा।
कुबेर ने सिर हिलाया, "जैसी आज्ञा, युवराज।"
"सेनापति जी, आप यहीं रुके, इन सभी लोगों की सुरक्षा के लिए और ऊपर से यदि हम सब गए, तो चुड़ैल चौकन्ना हो जाएगी।" इन्द्रजीत ने कहा।
"जी युवराज।" कुबेर ने उत्तर दिया।
"कुमार, मैं भी आपके साथ आऊंगी।'' मधुबाला ने कहा।
"नहीं, मधु। तुम यहाँ उन लोगों की सहायता करो जिन्हें चोट या क्षति पहुंची है।" अर्जुन ने कहा और मुस्कुराया, "चिंता मत करो। हम सब शीघ्र लौटेंगे।"
इन्द्रजीत, अर्जुन, तीर्थ, प्रमोद और लव चुड़ैल को खोजने चले गए। तीर्थ अपने पिता के साथ नहीं जाना चाहता था किंतु अर्जुन ने उसे समझाया कि उसके पिता का उनके साथ जाना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
"इसी स्थान पर...मैंने...मैंने उसे देखा था...यहाँ पर!" प्रमोद बोला। अर्जुन ने तुरंत इन्द्रजीत की ओर देखा और वे दोनों तुरंत उस वृक्ष के पीछे गए जहां प्रमोद संकेत कर रहा था। उन्होंने उस वृक्ष के आसपास अच्छे से जांच करी तो उन्हें मिट्टी से छुपी एक सुरंग मिली। उन्होंने तुरंत उसे खोला और वे सब उसके अंदर चले गए।
अंदर बहुत अंधेरा था। तीर्थ ने लव का हाथ पकड़ रखा था ताकि वह भयभीत ना हो।
इन्द्रजीत सबसे आगे चल रहा था। उसके पीछे अर्जुन था और फिर प्रमोद। सबसे पीछे तीर्थ और लव।
"चुड़ैल सुरंग का प्रयोग कर रही है? असंभव! ये सब किसी मनुष्य का ही कार्य है।" अर्जुन ने कहा।
वे सब अंदर चलते गए और कुछ ही क्षण बाद उन्हें एक कक्ष मिला जहां कुछ कपड़े, नकली बाल वह शृंगार का सामन था। जिससे ये साबित हो गया कि कोई चुड़ैल बनने का नाटक कर रहा था। तभी किसी के भागने की आवाज आई। इन्द्रजीत तुरंत उस आवाज की ओर भागा। बाकी भी उसके पीछे दौड़ते है। उन्हें दिखता है कि वह एक स्त्री थी। वह उनसे भाग रही होती है कि तभी उसके सामने सुरंग का रास्ता समाप्त हो जाता है।
तभी अर्जुन को कुछ सुगंध आती है, "तेल?" वो सब समझ जाता है, "ये एक षड्यंत्र था!" सुरंग की दीवारों पर मिट्टी का तेल लगाया हुआ था। उस स्त्री पर भी वहीँ लगा हुआ जाप रहा था। वह स्त्री हंस पड़ी, "कोई नहीं बचेगा।" उसने दिए को नीचे गिरा दिया जिससे दीवार ने आग पकड़ ली। केवल अर्जुन ने देखा कि उस स्त्री की आँखों में अश्रु थे।
"कुमार अर्जुन!" इन्द्रजीत ने उसे अपनी ओर खिंचा और दीवार से दूर किया। वे लोग तुरंत सुरंग से बाहर की ओर भागने लगे।
"नहीं! मैं उस स्त्री को बचाए बिना नहीं जाऊँगा!" अर्जुन ने कहा और इन्द्रजीत की ओर देखा। इन्द्रजीत ने सिर हिलाया और उस स्त्री को खींचता हुआ बाहर ले गया।
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BL - क्षत्रिय धर्म सर्वप्रथम (Duty Always First)
عاطفيةस्वर्णलोक के राजकुमार, इंद्रजीत के लिए उसका कर्तव्य ही सर्वप्रथम है। राजा के आदेश पर अंबुझ राज्य के राजकुमार, अर्जुन उसे जीवन को खुलके जीना सिखाने की कोशिश करता है। क्या अर्जुन अपने इस नए इम्तिहान में सफल हो पाएगा ? क्या इंद्रजीत जीवन के इस नए रूख...