अध्याय 9 (भाग 6)

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नील कलम के त्यौहार का दिन आ गया था। चारों ओर रौनक लगी हुई थी। सभी सज धज कर त्यौहार देखने आये थे।

अर्जुन भी वहाँ पहुँच चुका था। उसके संग मधु भी थी। अंशुमन भी उनके साथ आया था। वह अपने राज्य की ओर से वहाँ आया था।

हर वर्ष की भांति, इस वर्ष भी, ढेरों की संख्या में लोग वहाँ एकत्रित थे। सभी अपने नेत्रों से नील कलम संगठन का नृत्य व संगीत देखने पधारे थे। ऐसा दृश्य कौन नहीं देखना चाहेगा?

नील कलम का सर्व वरिष्ठ सदस्य, उमा शंकर वहाँ पधार चूका था। वह उतना ही सुन्दर था, जितना उसका नृत्य।

"अद्भुत।" अर्जुन ने प्रशांसा की। मधु ने सिर हिलाकर हामी भरी। वहाँ बैठे सभी के चेहरों पे मुस्कान थी।

"सभी पधारे अतिथियों का, हृदय से स्वागत।" उमा ने एक छोटी सी मुस्कुराहट देते हुए कहा। उसके नेत्रों में, एक अद्भुत कोमलता थी।

उसने अपना नृत्य आरम्भ किया।

तभी उसी समय, वहाँ राधा, अपनी वीणा लेकर पहुंची, व झट से वीणा बजाकर उमा के नृत्य की शोभा बढ़ाने लगी।

राधा नील कलम के संगठन की सर्व श्रेष्ठ संगीतकार थी। उसका संगीत सुनकर ऐसा लगता, जैसे स्वर्ग में पहुंच गए हो।

"वास्तव में, स्वर्ग की अनुभूति हो रही हैं।" अर्जुन बोला।

अभी इतनी शोभा बढ़ी ही थी, कि तभी वहाँ नील कलम की तीसरी व चौथा सदस्य, गौरी चेतन व वरुण कुंज भी पहुंचे। उन्होंने जैसे ही गाना आरम्भ किया, उसी क्षण सभी मन्त्रन्मुक्त हो चुके थे।

ऐसा प्रतीत होता जैसे सभी की आत्मा कहीं दूर, स्वर्ग के किसी कण में जा बसी हो।

किंतु इतने सुंदर व मनमोहक दृश्य में, एक व्यक्ति था, जिसके हृदय में केवल पीड़ा ही पीड़ा थी। अर्जुन वेणु। उसके हृदय में केवल अश्रु थे, व आशा भी। उसे अभी भी आशा थी, कि उसका स्वप्न पूर्ण होगा। वह अपने प्रेम का मार्ग देख रहा था। किंतु वह आने का नाम ही नहीं लेता।

अर्जुन को दुखी देख, मधु भी दुखी थी।

"कुमार, मेरा हृदय कहता हैं, युवराज पत्र पढ़कर अवश्य आएंगे।" मधु बोली।

"हृदय तो मेरा भी यही कहता हैं, मधु। किंतु, जो व्यक्ति अपने जीवन के इतने वर्षों में, अपने पिता के कहने पर भी यहाँ नहीं आया, वो मेरे एक पत्र से यहाँ क्यों आएगा?" अर्जुन ने उत्तर दिया।

अंशुमन, जो यह सब सुन रहा था, चतुरता से मुस्कुराया। उसे पूर्ण रूप से ज्ञात था, कि इंद्रजीत वहाँ नहीं आएगा। उसने वर्षों पहले, ये प्रण लिया था, कि वह बिना किसी अवश्य कार्य के कहीं भी नहीं जाएगा। उसके ना आने से, अर्जुन का प्रेम उसके लिए अवश्य घटेगा।

और इसी का लाभ उठाने के लिए, अंशुमन ने अर्जुन की ओर कदम बढ़ाए। उसके मस्तिक्ष में एक चाल थी जो अर्जुन को उसकी ओर कर सकती थी।

किंतु जैसे ही उसने उसकी ओर कदम बढ़ाए, एक मधुर सी बांसुरी की धुन ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

सभी ने उस ओर देखा। बांसुरी इतनी मधुर थी, कि उमा ने स्वयं अपना नृत्य छोड़कर उस ओर देखा।

अर्जुन, मधु, अंशुमन व सभी ने उस ओर देखा। व उसी क्षण सभी दंग रह गए।

अर्जुन के नेत्र विश्वास नहीं कर पर रहें थे। उसका हृदय अधिक गति से धड़कने लगा।

अचानक वहाँ हलचल मच गई। सभी दंग थे। किसी को भी अपने नेत्रों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

"ये मैं क्या देख रहा हूँ?"

"क्या ये सत्य हैं?"

भीड़ में से आवाज़े आने लगी।

वर्षों में प्रथम बार, ऐसा शुभ अवसर आ चूका था। जिसकी सभी को प्रतीक्षा थी, जिसकी सबको कामना थी, वह दिन, वह क्षण आ चूका था। नील कलम की स्वर्ग भांति धरती पर, देव भांति महापुरुष ने आज कदम रखा था।

"युवराज इंद्रजीत।" उमा गर्व से मुस्कुराते हुए बोला।







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