अध्याय 4 (भाग 4)

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अगली सुबह, इन्द्रजीत लव और तीर्थ के संग अर्जुन और मधुबाला को खोजने निकल पड़े।

उन्होंने लगभग जगतपुर का आधा जंगल खोज लिया था किंतु उन्हें अभी तक अर्जुन व मधुबाला का कोई संकेत नहीं मिला। इन्द्रजीत की चिंता बड़ती जा रही थी। शाम होने को आयी थी।

"यदि हम उन्हें खोजते रह गए तो जगतपुर की समस्या पर कौन ध्यान देगा?" इन्द्रजीत ने कहा।

"कुमार, किंतु..." लव बोला।

"उन्हें बाद में ढूंढ लिया जाएगा। पहले जो करने आए हैं वो करते हैं।" इन्द्रजीत ने जबाव दिया और चलने लगा।

लव उसके आगे भाग कर गया और उसका रास्ता रोक दिया। "कुमार, यदि उन्हें कुछ हो गया तो? वे अब कोई अनजान तो नहीं। वे हमारे मित्र हैं।"

"निजी भावनाएं कर्तव्य के बीच नहीं आनी चाहिए।" इन्द्रजीत ने सख्त आवाज में कहा और आगे चल पड़ा।

लव ने नाराजगी जताते हुए कहा, "ठीक है! आप जगतपुर को पहले रखे, किंतु मैं कुमार अर्जुन को खोजने जाऊँगा।"

इन्द्रजीत ने तीर्थ की ओर देखा। तीर्थ इन्द्रजीत की आज्ञा की ही प्रतीक्षा कर रहा था। इन्द्रजीत ने उसे इशारों में आज्ञा दे दी, तीर्थ समझ गया।

"नजाने कब युवराज अपने हृदय की सुनेंगे। मैं जानता हूँ कि वे भी कुमार अर्जुन को ढूँढने के लिए बेचैन है किंतु कर्तव्य के बंधन में बंधे वे कभी ऐसा नहीं करेंगे।" लव ने तीर्थ को कहा। वे दोनों अर्जुन और मधुबाला को ढूँढने निकले थे।

"तुम्हें कैसे पता?" तीर्थ ने पूछा।

"मैं बचपन से कुमार के साथ रहा हूँ। इतना तो बता ही सकता हूँ।" लव ने उत्तर दिया।

वे दोनों अब नदी पार कर रहे थे कि तभी लव का पैर फिसलन पत्थर के कारण फिसल गया। वह गिरने ही वाला था कि तभी तीर्थ ने उसका हाथ पकड़ के उसे  अपनी ओर खींच लिया जिससे वह गिरने से बच गया। वे दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए थे व एक दूसरे को देख रहे थे कि तभी दोनों शर्मा गए और इधर उधर देख कर दूर हो गए।

तीर्थ मुस्कुराया। "यदि मैं ना होता तो आज कोई गिरने ही वाला था।" उसने तंज कसते हुए हास्य में कहा। "एक धन्यवाद तो बनता था..." वह मुह बनाने लगा।

लव ने चलना शुरू किया और चलते चलते खांसते हुए कहा, "धन्यवाद..." वह मुस्कुरा रहा था।

तीर्थ हँस पड़ा।

वहाँ सवर्ण लोक के महल में राजा त्रिलोक नाथ और हंसराज चिंता में थे।

"क्या लगता है? क्या जगतपुर का समाधान निकलेगा?" त्रिलोक नाथ ने कहा।

"जी महाराज, मुझे अनुज इन्द्रजीत पर पूर्ण विश्वास है।" हंसराज ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया।

तभी सवर्ण लोक के मंत्री कुबेर कश्यप कक्ष में आपने सैनिकों समेत पधारे। उसे राजा त्रिलोक नाथ ने ही बुलाया था।

"महाराज, आज्ञा।" कुबेर ने सिर झुकाकर कहा।

"महाराज, आज्ञा।" कुबेर ने सिर झुकाकर कहा।

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मंत्री कुबेर कश्यप

त्रीलोक नाथ गद्दे से खड़े हुए, "हम चाहते है कि आप इसी वक्त युवराज की सहायता के लिए जगतपुर के लिए रवाना हो जाए।"


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