अध्याय 9 नील कलम(भाग 1)

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कुछ सप्ताह पाश्चात्।

अर्जुन और इन्द्रजीत, दोनों अपने अपने राज्यों में थे। इन्द्रजीत सवर्ण लोक का कार्य सम्भाल रहा था व अर्जुन अंबुझ राज्य का।

इन्द्रजीत अपने कक्ष में बैठा राजकीय कागज़ों को पढ़ रहा था। वे कुछ आवश्यक कागज़ात थे जिनपे स्वयं उसके ही हस्ताक्षर चाहिए थे। उसका ध्यान पूर्ण रूप से उन ओर ही केंद्रित था। लव भी उसके साथ ही था। वह खड़ा खिड़की से बाहर देखता है कि तभी उसे खिड़की से बाहर तीर्थ खड़ा दिखता हैं जो उसे इशारों में बाहर आने के लिए कह रहा था। लव अचंभित रह गया। उस दिन तीर्थ की तबियत कुछ ठीक नहीं थी इसलिए उसे छुट्टी दी गयी थी किंतु फिर भी वह वहाँ पहुंचा हुआ था।

लव ने भय से इन्द्रजीत की ओर देखा। इन्द्रजीत ने अभी उसे वहाँ नहीं देखा था, ये देखकर लव ने चैन भरी साँस ली। उसने तुरंत तीर्थ की ओर देखा और उसे इशारों में वहाँ से जाने के लिए कहने लगा। तभी इन्द्रजीत ने लव को इशारे करते हुए देख लिया। उसे कुछ समझ ना आया। उसने खिड़की की ओर देखा , तो तीर्थ तुरंत नीचे होकर छिपने लगा।

"मर गए।" लव ने सोचा।

इन्द्रजीत ने वापिस अपने समक्ष पड़े कागज़ात की ओर देख लिया और ऐसे अभिनय करने लगा जैसे उसे कोई अंदाजा ही नहीं था कि क्या हो रहा हैं। उसने पढ़ते हुए आह भरी।

"लव।" इन्द्रजीत ने कहा।

"जी...जी कुमार?" लव ने घबराते हुए उत्तर दिया।

"बगीचे में जाकर गौ माताओं को भोजन कराकर आओ। आज मैं नहीं जा पाऊँगा, मुझे कार्य समाप्त करने है।" इन्द्रजीत ने कहा।

लव हैरान हुआ किंतु अंदर ही अंदर खुश भी। वह मुस्कुराया।

तीर्थ भी सुनकर अति प्रसन्न हो गया। उस ने शांत होकर जश्न मनाया। वह उत्सुक था।

"जी...कुमार!" लव ने उत्सुकता और प्रसन्नता से कहा और वहाँ से चल दिया। तीर्थ भी वहाँ से निकल गया।

इन्द्रजीत मुस्कुराया। उसे तो सब पता ही था।

वह वापिस अपने कागज़ात पढ़ने का प्रयास करने लगता हैं। देखकर कोई भी कह दे कि उसने तो आधे पन्ने पढ़ ही लिए होंगे किंतु ये सत्य नहीं था। सत्य तो ये हैं कि उससे अभी तक एक भी पन्ने नहीं पढ़ा गया था। उसके नेत्रों में केवल एक ही व्यक्ति का चेहरा आ रहा था। अर्जुन का। उसने आह भरी और खिड़की की ओर देखा। लव और तीर्थ की भांति ही उसे भी अपने प्रेम से भेंट करने की इच्छा हो रही थीं।

वह खिड़की से आकाश की ओर देखने लगा। तभी उसकी खिड़की पर एक पंछी आया। ध्यान से देखने पर उसे ज्ञात हुआ कि उस पंछी के पैर पर पत्र बंधा हुआ था। वह तुरंत उठकर उसकी ओर गया। उसने प्रेम और ध्यान से पंछी के पैर से वह पत्र निकाला और शीघ्रता से खोला। उसके चहरे पर मुस्कान थी।

किन्तु जैसे ही उसने वह पत्र खोला, उसकी मुस्कान चली गयी। वह पत्र अर्जुन का नहीं, राजकीय मंत्री से था। उसने दुख भरी आह भरी और आकाश की ओर, चहरे को हाथ पर, कोहनी को खिड़की के सहारे रख अपने प्रेमी के बारे में सोचने लगा।

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