कुछ क्षण पश्चात वे सब रामनिवास में पहुँच गए। इन्द्रजीत उस व्यक्ती को न्यायालय में ले गया। वह व्यक्ती सवर्ण लोक का एक सिपाही था जो कि शत्रुओं को सवर्ण लोक के गुप्त मार्ग बताने वाला था। इस विश्वासघात करने के अपराध में उसे कोठरी में बंद कर दिया गया। उस व्यक्ती को इन्द्रजीत स्वयं बँधी बनाना चाहता था इस लिए वह स्वयं गया।
अब समय आ चुका था कि अर्जुन अपने राज्य वापिस लौटता। सुबह होते ही अर्जुन और मधुबाला अंबुझ राज्य के लिए निकलने लगे। निस्संदेह अर्जुन का ह्रदय वही रहना चाहता था किंतु उसे अपने माता, पिता व प्रजा के लिए लौटना ही था।
"महाराज हमे आज्ञा दें।" अर्जुन ने महाराज त्रिलोक नाथ के चरण स्पर्श किए।
"चले?" हंसराज ने पूछा। वैसे तो अंबुझ राज्य के सैनिक अर्जुन को लेने आ चुके थे किंतु फिर भी उसे मुख्य द्वार तक छोड़ने किसी को जाना ही पड़ता। इसलिए हंसराज उसके साथ द्वार तक जा रहा था। उसके साथ तीर्थ और लव भी जा रहे थे।
"क्या युवराज सच में नहीं आ रहे?" तीर्थ ने लव से पूछा।
"मैंने कहा था उन्हें, किंतु..."
"कार्य के कारण?'' तीर्थ ने कहा। लव ने हाँ में गर्दन हिलाई। उन दोनों ने निराशा जनक आह भरी।
अर्जुन भी प्रतीक्षा कर रहा था कि कब वह अंतिम बार इन्द्रजीत को देख पाएगा किंतु अंततः, वह नहीं आया। यह देखकर त्रिलोक नाथ को भी थोड़ी लज्जा आयी।
"क्षमा कीजिएगा। युवराज ऐसे ही हैं। इसी की चिंता मुझे सदैव सताती है।" महराज ने कहा, "अपने पिता को मेरा प्रणाम कहना।" उसने मुस्कराते हुए कहा। के
"जी महाराज।" अर्जुन भी मुस्कुराया। किंतु भीतर से वह भी निराश था। वे सब इन्द्रजीत के बिना ही चले गए।
मुख्य द्वार पर जाकर अर्जुन ने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा किंतु इन्द्रजीत नहीं आया। कहीं ना कहीं उसे अभी भी लग रहा था कि वह आएगा।
तभी पीछे से व्यक्ति के कहने की आवाज आयी, "युवराज!?" यह सुनते ही अर्जुन के चेहरे पर मुस्कान आ गयी। वह तुरंत पीछे मुड़ा किंतु वहाँ कोई नहीं था। वह व्यक्ती नशे में था। उसने मदिरा पी हुई थी। इन्द्रजीत वहाँ नहीं था। यह देखकर अर्जुन की मुस्कराहट निराशा में बदल गयी। वह वापिस मुड़ गया। अंततः उसने हार मान ली।
यह देखकर मधुबाला, तीर्थ और लव भी अधिक दुखी हुए।
चकोर करे प्रतीक्षा सदा ना आए चंद्र हर रात्रि,
कर पाए ना प्रेम चंद्र तो भूल कैसे चकोर की?
निराश रहे चकोर करे एक प्रेम की बस माँग,
यदि चंद्र ना समझे ये भी तो कैसे बनेगा प्रेमी?I need a lottttttt of comments today🥺🥺 ज़िद है बस!!🥺
आप पढ़ रहे हैं
BL - क्षत्रिय धर्म सर्वप्रथम (Duty Always First)
Romanceस्वर्णलोक के राजकुमार, इंद्रजीत के लिए उसका कर्तव्य ही सर्वप्रथम है। राजा के आदेश पर अंबुझ राज्य के राजकुमार, अर्जुन उसे जीवन को खुलके जीना सिखाने की कोशिश करता है। क्या अर्जुन अपने इस नए इम्तिहान में सफल हो पाएगा ? क्या इंद्रजीत जीवन के इस नए रूख...