अध्याय 8- इर्ष्या (भाग 1)

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मधु आँगन में बैठी प्रतीक्षा कर रही थी। उसे पूर्ण विश्वास था कि इन्द्रजीत अर्जुन के साथ ही लौटेगा। उसे अत्यंत खुशी और उत्साह था। तभी उसने देखा कि राजनिवास के मुख्य द्वार से इन्द्रजीत और अर्जुन दोनों अपने घोड़ों पर आए हैं। वह तुरंत उन ओर दौड़ कर गयी।

सिपाहियों ने घोड़ों को पकड़ लिया और इन्द्रजीत व अर्जुन घोड़ों से उतर गए। अर्जुन ने घोड़े को लाड़ किया और फिर चल दिया।

"कुमार!" मधु उसके पास गयी।

"अरे, मधु? क्या हुआ? इतनी व्याकुल क्यों हो?" उसने प्रश्न किया।

मधु ने उसकी ओर क्रोधित होकर देखा। "ये प्रश्न आप स्वयं से करके देखिए, उत्तर की प्राप्ति होगी।" उसने मूहँ दूसरी ओर कर लिया। जहाँ इन्द्रजीत था। उसने इन्द्रजीत को सिर झुका कर धन्यवाद किया। "आइए, भीतर चलते हैं।" वह मुस्कराकर दोनों को बोली।

दोनों उसके पीछे पीछे भीतर चल दिये।

"लव और तीर्थ भी आए हैं?" अर्जुन ने उत्साहित होकर पूछा। वह मुस्करा रहा था। मधु को ये देख कर अत्यंत आश्चर्य हुआ। उसने हाँ में सिर हिलाया। अर्जुन खुश हुआ और उनके कक्ष में जाने लगा। "ऊपर वाले कक्ष में, कुमार।" वह हँसते हुए बोली।

"मुझे ज्ञात हैं।" अर्जुन ने दौड़ते हुए उत्तर दिया।

मधु और इन्द्रजीत हंसे। इन्द्रजीत अर्जुन का वो रूप देख खुश हुआ। मधु उसकी ओर मुड़ी। "मुझे समझ नहीं आता कि आपका धन्यवाद किस प्रकार किया जाए। कुमार सेनापति केशव की मृत्यु के पश्चात बदल गए थे। उन्हें स्वयं की ही सुध बुध नहीं रहीं थीं। मुस्कराते भी नहीं। आज इतने समय बाद उनके चेहरे पर मुस्कान आयी हैं। इसका श्रेय केवल आपको हैं, युवराज।"

"मुझे खुशी हुई जानकर। कुमार अर्जुन जल्द ही इस विपदा से निकलेंगे। मुझे विश्वास हैं।" इन्द्रजीत ने कहा।

"यदि आप उनके साथ रहें, तो ये भी संभव हैं।" मधु मुस्कराकर बोली। इससे इन्द्रजीत के चहरे पर भी मुस्कान आ गयी।

वहीं दूसरी ओर, अर्जुन उस कक्ष के बाहर गया जहाँ लव और तीर्थ थे। उस कक्ष के बाहर से कुंडी लगी थी। "अरे, ये तो बाहर से बंद हैं।" उसने कहा और कुंडी खोल दी।

अचानक कुंडी खिलते देख लव और तीर्थ दोनों आश्चर्य चकित थे। लव तुरंत कंबल के अंदर घुस गया और अपने आप को छुपा लिया। तीर्थ ने देखा कि वह तो कुमार अर्जुन था।

भीतर जाते ही तीर्थ को पलंग पर इस प्रकार देख अर्जुन को चिंता हुई, "अरे, तीर्थ! क्या हुआ? सब ठीक है?" उसने प्रश्न किया।

"अरे!! कुमार, आप ,यहाँ??" तीर्थ बोला। "जी, जी...सब ठीक है...बस..."  वह झूठ मूठ का छींकते हुए बोला, "बस थोड़ी सर्दी लग गयी है।"

"अपना ध्यान रखो। लव कहाँ हैं?" अर्जुन ने पूछा।

अपना नाम सुनते लव को घबराहट हुई। "वह बाहर गया था। आता ही होगा।" तीर्थ ने मुस्कराते हुए बात को टालना चाहा।

"ठीक है, तो मैं यहीं प्रतीक्षा करूं?" ऐसा कहकर अर्जुन वहीं गद्दे पर बैठ गया।

"ये क्या हो रहा हैं..." लव ने धीमी आवाज में तीर्थ को डाँटा।

तीर्थ खांसने लगा। "कुमार, आप यहाँ मत रहिए, अन्यथा आपको भी सर्दी लगी जाएगी। कृपया आप जाइए, लव जैसे ही लौटेगा, मैं उसे आपके पास भेज दूँगा।"

"अरे, तुम क्यूँ कष्ट करोगे, तुम लेते रहो।" अर्जुन ने कहा।

"कष्ट?" तीर्थ को समझ ना आया कि कैसे उस बला को टाला जाए। "अरे हाँ, याद आया। लव बाज़ार से कुछ लेने गया हैं। उसने कहा था कि वह शाम तक लौटेगा। तो आप प्रतीक्षा ना करे।" उसने कहा और फिर से छींकते हुए बोला, "देखिए कुमार, ये खांसी आपको भी हो जाएगी। आप जाए यहाँ से।"

"अ...ठीक है तीर्थ, तुम अपना ध्यान रखना...मैं औषधि भिजवाता हूँ।" ऐसा कहकर अर्जुन कक्ष से बाहर चला गया और द्वार बंद कर दिया।

लव की जान में जान आयी। वह कंबल से बाहर आया, "ये सब क्या हो रहा है??" उसने तीर्थ को डाँटा और क्रोध से दूरी और देखा। "मैंने कहा था कि ये सब यहाँ करना सुरक्षित नहीं। क्या होता यदि कुमार अर्जुन हमे इस तरह देख लेते तो?"

"तो क्या? तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे किसी को कुछ पता ही नहीं।" तीर्थ हँसा।

"चुप रहो!"

"क्षमा करो ना। हम्म?" तीर्थ कान पकड़ कर बोला। किन्तु जब लव ने उसकी ना सुनी, तो एक ही विकल्प था। उसने तुरंत उसका मुँह अपनी ओर  किया और उसे गले लगाने लगा।

"छोड़ो मुझे!!"

तीर्थ जोर जोर से हंसने लगा। "अरे, मेरे प्रिय लव।" वह उसे छेड़ने लगा।

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