अध्याय 9 (भाग 2)

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"लव, मेरी बात तो सुनो कि मैं कहना क्या चाहते हूँ।" तीर्थ लव के पीछे पीछे जा रहा था।

"मुझे कुछ नहीं सुनना। जाओ यहाँ से और मुझे मेरा कार्य करने दो। समझे?" लव ने क्रोधित होकर उत्तर दिया।

"अरे किंतु सुनो तो--" तीर्थ उसका हाथ पकड़ लेता है। तो लव रुकता है व उसकी ओर मुड़ता है। वह तीर्थ से अपना हाथ छुड़ाता है।

"क्या कहना चाहते हो? यही, कि तुम्हें विश्राम करने को कहा गया था और, तू यूँ यहाँ वहाँ घूम रहे हो?" लव ने तंज कसते हुए कहा।

"सत्य कहूँ तो... मेरा हृदय केवल तुम्हारे संग ही विश्राम पाता है।" तीर्थ ने मुस्कुराते हुए कहा। लव को लज्जा आने लगी। वह मुस्कुराने लगा। किंतु अगले ही क्षण उसने मुस्कुराना बंद किया।

"तीर्थ, तुम्हें विश्राम की आवश्यकता है। जाओ और विश्राम करो। युवराज ने मुझे गौ माता को भोजन कराने को कहा है। वह कार्य समाप्त कर के मैं स्वयं तुम्हारे कक्ष में आऊंगा। किन्तु अभी तुम जाओ और सो जाओ।" लव ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा।

तीर्थ मुहँ बनाने लगा। "लगता है तुम मेरे संग समय व्यतीत करना ही नहीं चाहते।" उसने कहा।

"तीर्थ!" लव क्रोधित हुआ। "क्या कह रहे हो!" वह चिल्लाया।

तभी तीर्थ शरारती मुस्कराहट देता है, और अचानक लव का हाथ पकड़ता है, "तो चलो!" वह हँसता है, और उसे वहाँ से भागकर ले जाता है।

"तीर्थ! कहाँ ले जा रहे हो!"

...

वहीं अंबुझ राज्य में, मधु अर्जुन के लिए भोजन लेकर जा रही थी। अर्जुन सवेरे से मुख्य मंत्री के संग राजसभा में था।

"कुमार, यदि आप आज्ञा दें, तो ये कार्य आज ही आरम्भ हो जाए।" मुख्य मंत्री सुप्रिया आनंद बोली।

अर्जुन ने हामी भरी, "आज्ञा है।" उसने कहा।

"जैसी आपकी आज्ञा, कुमार।" सुप्रिया बोली। तभी उसके नेत्र मधुबाला पर पड़ते हैं। मधु भी उसकी ओर देखती है, किंतु देखते ही नज़रंदाज कर देती है। वह अर्जुन की ओर देखती है।

"कुमार, आपके भोजन का समय हो चुका है। कृपया भोजन ग्रहण कर लें।" मधु कहती है, व भोजन परोसने लगती है।

अर्जुन खुशी से मुस्कराता है, "अवश्य!" वह भोजन के लिए अति उत्सुक था। वह दौड़कर भोजन की ओर गया, व बैठ गया। उसने सुप्रिया की ओर देखा, "मुख्य मंत्री जी, आईए भोजन ग्रहण कीजिए।" वह मुस्कुराते हुए बोला।

सुप्रिया मुस्कराई व उठी, "धन्यावाद कुमार, किंतु मुझे जाना होगा। कभी और सही। आज्ञा दीजिए।" वह बोली।

"ठीक है..." अर्जुन अफसोस में बोला। सुप्रिया उसे प्रणाम कर के चली गयीं।

अर्जुन हाथ जोड़कर अन्न देवता की प्रार्थना करने लगा। तब तक मधु ने उस की थाल में भोजन परोस दिया था। अर्जुन उत्सुकता से भोजन करने लगा। मधु निकट खड़ी दासियों को इशारों से जाने को कहती है। वे सारी वहाँ से चली जाती है।

"अति उत्तम!" अर्जुन पकवानों की प्रशंसा करता है।

"कुमार।" मधु बोली।

"क्या हुआ, मधु? बोलो।"

"नील कलम की सालगिरह आ रही है।" मधु बोली।

"हाँ, आ रही है, तो?" अर्जुन खाते खाते बोला।

नील कलम एक संघठन है, जिसमें अति उत्तम नर्तक व गायक आते हैं। हर वर्ष वे एक कार्यक्रम रखते हैं, जिसमें वे नृत्य करते हैं, व गायन-वादन भी।

"क्या आपको लगता है कि, इस वर्ष... युवराज इन्द्रजीत भी आएँगे?"

अर्जुन भोजन करते करते रुक जाता है। वे दोनों एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं।

प्रश्न अति आवश्यक था, और इसका उत्तर और भी अधिक।

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