अर्जुन केशव को देख कर आश्चर्यचकित रह गया। वह तुरंत बिस्तर से उठा।
"केशव...?"
केशव उसके मुझे से अपना नाम सुनकर तुरंत उसके निकट गया और उसे गले से लगा लिया, "तुम्हें मैं स्मरण हूँ!" उसने कहा। अर्जुन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इतने वर्षो बाद वह सच में केशव को देख रहा था या वो सब एक स्वप्न था।
"ऐसा एक भी क्षण नहीं था जब मैंने तुम्हें याद नहीं किया हो।" केशव ने कहा, "अब हम मिल चुके हैं। अब कदाचित एक दूसरे को नहीं छोड़ेंगे!" उसने कहा। यह सुनते ही अर्जुन ने स्वयं को उससे दूर किया। केशव उसे देखता रहा। "अर्जुन?"
"क्यूँ मेरे जीवन में लौट आए हो?" अर्जुन ने कहा।
वे दोनों बचपन में गुरुकुल में मिले थे। केशव अर्जुन से छह वर्ष बड़ा था। उसका गुरुकुल में अंतिम वर्ष था। तब वह अर्जुन को गुरु के कहने पर तीर कमान सीखता था। एक दूसरे के साथ समय व्यतीत करने से दोनों अच्छे मित्र बन गए। किन्तु धीरे धीरे उनकी मित्रता प्रेम में बदल गयी।
उन दोनों ने एक वर्ष प्रेम संबंध में व्यतीत किया। गुरुकुल से शिक्षित होके जाने के पाश्चात्, केशव राजनिवास में सबसे पूर्व एक द्वारपाल का कार्य करना शुरू किया। राजकुमार अर्थात राज परिवार से होने के कारण, अर्जुन का केशव से मिलना कठिन था किंतु केशव ने राज्द्वारपाल का कार्य इसलिए चुना ताकि वह अर्जुन से रोज मिल सके क्योंकि वह गुरुकुल से शिक्षित हो चुका था व उससे वहाँ नहीं मिल सकता था।
अर्जुन और केशव हर दिन चोरी छिपे मिलते थे। मधुबाला को भी सब ज्ञात था। पूरे राज निवास में यह और किसी को नहीं पता था। धीरे धीरे, परिश्रम करके द्वारपाल से बढ़कर सैनिक बना और फिर एक वर्ष पश्चात सेनापति के पद तक पहुँच गया। इसके लिए उसे अपना एक हाथ गंवाना पड़ा। उसका हाथ युद्ध में लड़ते हुए कट गया। इसके कारण उसे सेनापति से राज सेना का उच्च सुझाव कार बना दिया।
एक दिन जब अर्जुन और केशव चुपके जलधारा के पास मिल रहे थे तो महाराज के मित्र का पुत्र अंशुमन, जोकि उन दिनों वहीँ था, ने उन्हें गले मिलते देख लिया। वह अर्जुन को पसंद करता था। उन दोनों को देख के उसे ईर्ष्या हुई और उसने महाराज को सब जाके बता दिया। महाराज को ये सुनकर क्रोध आया कि अर्जुन ने अपने पिता से सब कुछ छुपाया। उन्होंने अर्जुन का राज निवास से निकलना बंद कर दिया।
आकाश लोक का राजकुमार अंशुमन
उस दिन के बाद अर्जुन और केशव फिर कभी नहीं मिले। अर्जुन को चिंता हुई किंतु कुछ दिनों बाद उसे एक पत्र प्राप्त हुआ जो केशव ने लिखा था। उसमें उसने बताया कि वह चाहता है कि अर्जुन उसे सदैव के लिए भूल जाए और एक नया जीवन प्रारंभ करें। उसके दिय हर वचन को भूल जाए क्यूंकि वह स्वयं भी ऐसा ही करने वाला था। उसने एक स्त्री से विवाह कर लिया है और अब वह आशा करता है कि वे दोनों फिर कभी नहीं मिलेंगे।
ये देखने के बाद अर्जुन ने निर्णय लिया कि वह कभी केशव को नहीं देखेगा। उस दिन के पश्चात वह केशव से अब ही मिल रहा था।
अर्जुन को जब वह क्षण याद आया, वह तुरंत कक्ष से बाहर जाने लगा। तभी केशव ने उसे पीछे से अपनी ओर खींच लिया। "कहीं ऐसा ना हो कि मुझे तुम्हारे साथ जबरदस्ती करनी पड़े। इस बार मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा!" उसने कहा और उसे पीछे से गले लगा लिया।अर्जुन ने स्वयं को उसकी पकड़ से छुड़ाने का प्रयास किया किन्तु वह कुछ ना कर सका। अंत वह रोने लगा, "मैं अब तुमसे प्रेम नहीं करता! मुझे जाने दो!" वह चिल्लाया।
यह सुनकर केशव को क्रोध आया, "अर्जुन, यदि हमारे बीच कोई और आया तो रक्त की धाराएं बहेंगी।" ऐसा कहकर वह क्रोध में कक्ष से चला गया।
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BL - क्षत्रिय धर्म सर्वप्रथम (Duty Always First)
Romanceस्वर्णलोक के राजकुमार, इंद्रजीत के लिए उसका कर्तव्य ही सर्वप्रथम है। राजा के आदेश पर अंबुझ राज्य के राजकुमार, अर्जुन उसे जीवन को खुलके जीना सिखाने की कोशिश करता है। क्या अर्जुन अपने इस नए इम्तिहान में सफल हो पाएगा ? क्या इंद्रजीत जीवन के इस नए रूख...