अध्याय 7 (भाग 3)

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अगली सुबह होते ही एक ऐसी खबर मधुबाला तक पहुँची कि उसकी खुशी का ठिकाना ही ना रहा। सवर्ण लोक से स्वयं युवराज इन्द्रजीत वहाँ पहुँच चुके थे। उनके साथ लव और तीर्थ भी थे। मधुबाला को अधिक खुशी हुई कि महाराज ने कुमार अर्जुन के सुख के लिए युवराज इन्द्रजीत को वहाँ आमंत्रित कर ही दिया। वह उनसे धन्यवाद कहती किंतु वे तो किसी आवश्यक कार्य हेतु बाहर चलेगा गए थे।

खबर मिली कि युवराज सीधा कुमार अर्जुन से मिलने के लिए उसके कक्ष के पास आ रहे हैं किन्तु फिर पता चला कि कुमार तो राजनिवास में था ही नहीं। वह तो सुबह होने से पहले ही वन की ओर निकल पड़े थे।

"कुमार ऐसा कैसे कर सकते हैं?" मधुबाला चिंता में बोली, "उन्होंने कल ही मुझे वचन दिया था कि वे मुझे सूचित किए बिना कही नहीं जाएंगे।"

उसे निराश देख लव ने उसे हौंसला देना चाहा, "अरे मधु! आप चिंता ना कीजिए। वे यहीं कहीं गए होंगे।"

तीर्थ ने उसका समर्थन किया। "ठीक कहा। आखिरकार वे स्वयं राजकुमार है और साथ ही राज्य से अवगत है। उन्हें कुछ नहीं होगा।"

यह सुनते ही इन्द्रजीत तुरंत उठ खड़ा हुआ। "नहीं। उन्हें खोजने जाना होगा। वे अभी अपने सही मानसिक स्थिति में नहीं हैं।"

"किंतु युवराज--" तीर्थ के कुछ कहने से पहले ही इन्द्रजीत वहाँ से चला गया और उसने किसी को भी अपने पीछे आने से मना कर दिया। वह अर्जुन को स्वयं ढूँढना चाहता था।

"आइए, मैं तब तक आपको आपके कक्ष दिखाती हूँ।" मधुबाला ने मुस्कुराते हुए कहा। वह अब खुश थी क्यूंकि वह ये जानती थी कि युवराज इन्द्रजीत के वहाँ होते हुए अर्जुन दुखी नहीं होगा। उसे पूर्ण रूप से विश्वास था। तीर्थ और लव उसके पीछे पीछे चलेगा गए।

ऊपर जाने के पश्चात्‌ मधुबाला ने उन्हें एक कक्ष के समक्ष खड़ा कर दिया। "वैसे...मैं एक प्रश्न करना चाहती हूँ। क्या मैं कर सकती हूँ?"

"कीजिए न।" तीर्थ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया।

"आप दोनों...एक ही कक्ष में रहेंगे?" मधु के चहरे पर एक शरारती मुस्कान थी।

यह सुनते ही लव चकित रह गया। उसको लज्जा आयी। उसने अपना चहरा दूसरी ओर कर लिया। तीर्थ हंस पड़ा और फिर उसने हाँ में सिर हिलाया।

मधुबाला हंसी और तुरंत उन दोनों को भीतर धक्का मार कर कक्ष के द्वार को बाहर से कुंडी लगा कर भाग गयी।

"अरे? मधु!" लव द्वार की ओर जाकर उसे खटखटाने लगा कि तभी पीछे से तीर्थ ने उसे ज़ोर से गले लगा लिया। "क्या कर रहे हों?"

"रहने दो ना। वैसे भी हर रात्रि तो साथ ही-"

"कैसी बातें कह रहे हो?" लव ने उसे बोलने से रोका।

"अरे, क्यों? सत्य तो सत्य हैं ना?"

"होगा। किंतु फिर भी।" लव ने उत्तर दिया। "मुझे...मुझे लज्जा आती है।" उसके गाल लाल हो चुके थे।

"मेरी ओर देखो, लव। इस तरह, ऐसे समय में, अपना मुख फेरकर मेरे जी में बेचैनी ना पैदा किया करो। तुम्हें ज्ञात हैं ना कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ?" तीर्थ ने कहा।

"हम्म..." लव ने शर्माते हुए कहा।

"मैं चाहता हूँ कि तुम केवल मेरे रहो। रहोगे ना!?"

"हाँ!" लव ने तुरंत उत्तर दिया। उसने तीर्थ की ओर प्रेम भरे नेत्रों से देखा। यह सुनते और देखते ही तीर्थ से और रहा ना गया। उसने लव को उठा लिया और पलंग पर ले गया।






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