अध्याय 4 (भाग 5)

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अर्जुन मधुबाला के साथ बैठा था। वह अजीब आदमी भी उनके सामने बैठा था और वे तीनों बातें कर रहे थे कि तभी उस गुफा में किसी के आने की आवाज आती है। वह व्यक्ती सतर्क हो जाता है। अर्जुन लकड़ी के बिस्तर से उठ जाता है।

वो व्यक्ती व अर्जुन सतर्क होते हुए उस परछाई की ओर बड़ते है। तभी वह परछाईं वाला व्यक्ती उनके सामने आता है। वह कोई और नहीं बल्कि इन्द्रजीत निकालता है।

जैसे ही अर्जुन उसे देखता हैं उसकी खुशी का मानो ठिकाना ही नहीं रहता। वह उसकी ओर दौड़ता हुआ जाता हैं और उसके गले लग जाता हैं।

"अ...कुमार अर्जुन...?" इन्द्रजीत की आँखें खुली की खुली रह जाती है। वह समझ नहीं पाता कि क्या प्रतिक्रिया दे। वह बस चुप चाप खड़ा रहा। जब तक कि अर्जुन स्वयं उससे दूर नहीं हुआ।

मधुबाला खड़ी हो जाती है। उसे अब और सुरक्षित महसूस हो रहा था क्यूंकि उसका राजकुमार यानी अर्जुन सुरक्षित था। उसने आह भरी और भगवान का हाथ जोड़कर आभार व्यक्त किया। "शुक्र है प्रभु!" उसने इन्द्रजीत को भी धन्यवाद किया कि तभी उसने उसके लाल गाल और लाल कान देख पूछा, "युवराज, आपके कान और गाल लाल क्यो है?"

इन्द्रजीत ने मुँह फ़ेर लिया, "कुछ...नहीं..बस वैसे ही...हम्म..." वह बात पलटाने के लिए खांसने लगा, "मुझे खुशी हुई आप दोनों सुरक्षित है..." तभी उसने उस बाल बिखरे व्यक्ती को देखा और तुरंत अपनी तलवार खोल ली।

अर्जुन ने उसे रोक लिया, "नहीं युवराज!" इन्द्रजीत समझ ना पाया। "तात्पर्य?"

अर्जुन ने आह भरी और इन्द्रजीत को गुफा से बाहर ले गया।

"आपकी दासी?"

"कुछ नहीं होगा!" अर्जुन ने उत्तर दिया। "वह व्यक्ती जो आपने अंदर देखा वह बिल्कुल भी खतरनाक नहीं है। चिंता की आवश्यकता नहीं युवराज। वह व्यक्ती जगतपुर का ही है। इसका उस सिर कटी चुड़ैल से कोई संबंध नहीं। उसका संबंध है..."

"किससे?" इन्द्रजीत ने पूछा।

"आपको वह कविता याद है...'बुलबुल और सैनिक'?"

इन्द्रजीत ने सिर हिलाया, "आयोग के दो रक्षक, बुलबुल और सैनिक, यदि मृत्युलोक में लौटे, फिर कैसा भय अधर्म से, दुखों और युद्धों से।"

"बिल्कुल सही। मेरे पिता जी ने मुझे इस कविता के पीछे की कथा एक पुस्तक से सुनाई थी। हजारों वर्श पूर्व आयोग एक गांव था, जहां पर असुरों का वास था। बुलबुल जो कि एक सेनापति थी, अपने सैनिक के साथ पूर्णिमा की रात उस गांव में गयी और उन असुरों को एक एक कर मारकर आयोग को असुर मुक्त कर दिया। आज भी कुछ जनजातियां इस कविता में विश्वास रखती हैं कि पूर्णिमा की रात युवा पुरुष और स्त्री की बलि देने से बुलबुल और उसके सैनिक को स्वर्ग से मृत्युलोक में बुलाया जा सकता है। ऐसी जनजाति जगतपुर में भी है। जब मैंने इस व्यक्ती को देखा तो मैं समझ गया था कि ये उस जनजाति के लोगों में से है।"

"कैसे?" इन्द्रजीत ने प्रश्न किया।

"वह एक मंत्र पढ़ रहा था जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा उस पुस्तक में बताया गया था। उसके बाद मैं सब समझ गया क्यूंकि आयोग की स्थिति की तरह ही जगतपुर पर भी चुड़ैल पिशाच का साया है। मैंने आंखें बंद कर सैनिक बनने का नाटक किया जिससे इस व्यक्ती को लगने लगा कि मधुबाला ही बुलबुल है।" अर्जुन ने उत्तर दिया।

इन्द्रजीत मुस्कुराया, "कुमार अर्जुन, आप अधिक बुद्धिमान है।"

अर्जुन हँसा, "बिल्कुल।" इन्द्रजीत गुफा में जाने लगा तभी अर्जुन को एहसास हुआ कि इन्द्रजीत पहली बार मुस्कुराया था, "रुकिए रुकिए!!" वह भागते हुए उसके पीछे गया।

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अर्जुन व इन्द्रजीत का theme song

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