अध्याय 7 (भाग 4)

95 13 8
                                    

अर्जुन को वन में कुछ ऐसा दृश्य दिखा कि वह कुछ बोलने लायक ना बचा। उसके समक्ष खड़ा था केशव। उसकी ओर देखते हुए, मुस्कराते हुए। अर्जुन दंग था। "के...केशव?" जैसा ही उसने उसका नाम लिया, वह वहाँ से जाने लगा। अर्जुन तुरंत बिना कुछ सोचे बुझे उसके पीछे जाने लगा।

"केशव?" अर्जुन ने कहा, किन्तु केशव ना मुड़ा। वह तेजी से उसकी ओर जाने लगा। केशव तेज़ गति में आगे की ओर जा रहा था। एक झरने के समक्ष आकर वह रुक गया। अर्जुन भी रुका। उसने आस पास देखा तो उसे समझ आया कि वह तो वही स्थान था जहाँ वे दोनों प्रथम बार एक दूसरे से मिले थे।

"याद आया, अर्जुन? केशव ने मुस्कराते हुए कहा।

अर्जुन के नेत्रों में अश्रु आ चुके थे। उसने हाँ में सिर हिलाया।

"यह स्थान वही हैं जहाँ मैंने तुम्हें पहली बार देखा था और स्वयं से ये वचन किया था कि सदैव तुम्हारी रक्षा करूंगा। जीते जी तो ये ना कर पाया, तो सोचा कि जाने से पहले ये वचन पूरा कर लूं।" वह बोला।

"नहीं, केशव, ऐसा नहीं बोलो।" अर्जुन रोने लगा।

"अब समय आ चुका हैं कि तुम जीवन को आगे जियो और जो कुछ हुआ उसे पीछे छोड़ दो। इसी में सुख हैं, अर्जुन। तुम्हारा भी, और मेरा भी।"

"किंतु मैं कैसे-"

"तुम्हें ये करना होगा। अर्जुन, यदि कोई व्यक्ती तुम्हें प्राणों से अधिक प्रेम करें, तो उसका साथ ना छोड़ना, चाहे कुछ भी हो जाए। स्मरण रहें।" उसके नेत्र अश्रु से भरे थे किंतु वह फिर भी मुस्कुराया। "अब समय आ चुका है, अर्जुन। ध्यान रखना।" वह बोला।

"नहीं...! केशव!" अर्जुन चिल्लाया। तभी उसका सिर भारी होने लगा। धड़कने तेज़ थीं। पीड़ा से उसकी आंखें स्वयं बंद होने लगी। वह नीचे गिर गया व ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। पीड़ा अधिक थी। किन्तु कुछ समय पश्चात सब ठीक हो गया। केशव जा चुका था। वह रोने लगा। उसने केशव की कहीं बातों पर गौर करना आरंभ किया। उन्हें समझना शुरू किया।

वहीं, वन में इन्द्रजीत अर्जुन को खोज रहा था। सर्दियाँ थी, किंतु घाम बहुत तेज़। इन्द्रजीत की आंखों में पड़ रहीं थीं किंतु उससे उसे कोई अन्तर नहीं पड़ा।

"कुमार अर्जुन!" वह उसका नाम लेते हुए उसे ढूँढ रहा था किंतु वह दूर दूर तक कहीं नहीं था। घंटों खोजने के पश्चात्‌ जब वह ना मिला तो वह थका हरा घुटनों के बल नीचे गिर गया।

तभी उसे एक व्यक्ती दिखाई पड़ा। वह दूर खड़ा था और उसका चेहरा इन्द्रजीत को कुछ साफ़ दिखाई नहीं पड़ रहा था किंतु उसे ऐसा लगा कि उसे उसके पीछे जाना चाहिए। वह तुरंत उठा और उसके पीछे भागने लगा।

दूसरी ओर,  पहाड़ी वन में अर्जुन वृक्ष तले बैठा था और आकाश की ओर देख रहा था। सर्दियों की घाम से उसकी आंखें आधी बंद हो रहीं थीं।

"अब समय आ चुका हैं, जीवन में आगे बढ़ने का। हैं ना, केशव।" ऐसा कहकर उसने पूरी तरह से आकाश की ओर सूरत करके आंखें बंद कर ली। वह अब पहले की भांति दुखी और व्याकुल ना था। उसका मन बचाने ना था। हृदय में केवल शांति थीं। अचानक जैसे ईश्वर का कोई संकेत आया हो। उसकी धड़कने उचित गति में थीं। तभी उसे अपना नाम सुनाई पड़ा। वह आवाज सुनी सुनी थी। उसने आंखें खोली। सामने झरना था।

"कुमार अर्जुन!" किसी ने फिर कहा। उस आवाज में चिंता थी, व्याकुलता थीं, बेचैनी थीं। अर्जुन ने तुरंत उस तरफ देखा तो पाया इन्द्रजीत को। अचानक दिल की धड़कने फिर बढ़ने लगी। सूरज की रौशनी आँखों में पड़ रहीं थीं किन्तु अब वह बंद नहीं हो रहीं थीं मानों जैसे उस दृश्य को वह भी छोड़ना नहीं चाहती थी।

इन्द्रजीत ज़ोर से साँसें ले रहा था जैसे कि वह दौड़ता हुआ, उसे ढूँढ़ना हुआ वहाँ पहुंचा हो। जब इन्द्रजीत ने अर्जुन को देखा तो उसे साँस में साँस आयी। वह खुशी के मारे नीचे गिर गया।

अर्जुन को केशव की बात याद आ गयी। "यदि कोई प्राणों से अधिक प्रेम करें, तो उसका साथ ना छोड़ना। चाहे कुछ भी हो जाए।"

वे दोनों एक दूसरे की ओर देखने लगे। अर्जुन ने इन्द्रजीत की आँखों में अश्रु पाए। इतने समय बाद, अखिरकार अर्जुन मुस्कुराया। उसके जीवन में इन्द्रजीत की वापसी हुई। और जीवन में, उसकी।





Need a lot of comments 🥹 let me know you're happy with the updates

BL - क्षत्रिय धर्म सर्वप्रथम (Duty Always First)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें