अध्याय 5 (भाग 2)

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जब वह व्यक्ती चला गया तो इंद्रजीत अर्जुन से तुरंत दूर हो गया। उसने दोबारा क्षमा मांगी, "क्षमा कीजिएगा। कोई और विकल्प नहीं था..." उसने अर्जुन से कहा। अर्जुन कुछ समझ ना पाया। वह तो कुछ कह भी ना पाया। वह चुप चाप खड़ा रहा। "हमें यहाँ से चलना होगा!" इन्द्रजीत ने कहा और तुरंत अर्जुन का हाथ थाम कर उसे अपने संग ले गया। वे भीड़ में वापिस चले गए। इन्द्रजीत ने अपने कपड़े को दो हिस्सों में फाड़कर एक हिस्से से अपना मुहँ ढका और दूसरे से अर्जुन का। उसने अर्जुन का हाथ नहीं छोड़ा।

"कुमार अर्जुन, मेरे साथ आइए।" ऐसा कहकर इन्द्रजीत अर्जुन को फिर से कहीं ले गया। वे मंच के पीछे गए और एक कक्ष में लेजा कर इन्द्रजीत ने अर्जुन से कहा, "आप इस कक्ष से मत। जब तक मैं ना आऊं।" उसने ऐसा कहकर कक्ष का द्वार बंद किया और वहाँ से चला गया। अर्जुन दीवार से लग कर धरती पर बैठ गया और जो कुछ उस दिन हुआ, उसके बारे में विचार करने लगा। उसके गाल लाल हो चुके थे। उसे समझ ना आया कि आखिर इन्द्रजीत ने ऐसा क्यूँ किया। तभी उसे लोगों के चीखने की ध्वनियां आयी। वह तुरंत उठा और उसने खिड़की से बाहर झांका। उसने देखा कि इन्द्रजीत एक व्यक्ती के साथ लड़ रहा था। वह तुरंत बाहर जाने लगा कि तभी उसे स्मरण आया कि इन्द्रजीत ने उसे वहाँ से निकलने से मना किया था।

"हे ईश्वर!" अर्जुन चिंतित हो उठा। वह बेचैन था। तभी उसने देखा कि इन्द्रजीत की सहायता के लिए कुछ और लोग आ गए थे। उनमे से एक देव कमल भी था। उन्होंने ने उस व्यक्ती को अंततः बँधी बना ही लिया। अर्जुन ने चैन की आह भरी और ईश्वर का धन्यवाद व्यक्त किया। तभी उसने देखा कि इन्द्रजीत के दाईने हाथ पर तलवार से घाव बन चुका था और वहाँ से रक्त बह रहा था। वह तुरंत बाहर भाग कर गया।

"कुमार इन्द्रजीत!" उसने उसका हाथ पकड़ा और जिस कपड़े से उसका मुहँ ढका था, उसने उसे इन्द्रजीत के घाव पर बाँध दिया, "आप ठीक हैं ना!?" उसने प्रश्न किया।

तभी इन्द्रजीत ने अपने हाथ की चिंता ना करते हुए अर्जुन को कंधों से पकड़ा और ऊपर से नीचे तक उसकी जांच की। कुछ क्षण बाद जब उसे यह विश्वास हो गया कि वह ठीक है, तो उसने उसके कंधों से हाथ हटा लिए। अब उसे भी वह क्षण याद आ गया। उसे शर्म आने लगी। उसने तुरंत दूसरी ओर देख लिया।

तभी मधुबाला अर्जुन की ओर भाग कर आयी, "कुमार! कुमार! आप कहाँ चले गए थे !? हमें आपकी कितनी चिंता हुई!"

"अ...मैं तो...यहीं था मधु!" वह हंसकर बोला।

उस बँधी को लेकर वह कुछ क्षण बाद वहाँ से निकल गए। देव कमल, मधुबाला, अर्जुन और इन्द्रजीत सभी एक ही बैलगाड़ी में थे। इन्द्रजीत व अर्जुन एक साथ बैठे थे। पत्थर भरे रास्ते होने के कारण बैलगाड़ी को धक्के लग रहे थे जिससे अर्जुन और इन्द्रजीत एक दूसरे से टकरा रहे थे। दोनों के गाल लाल थे किंतु इन्द्रजीत के कान भी लाल हो चुके थे।

मधुबाला सब कुछ देख रही थी व मंद मंद हंस रही थी।

तभी बैलगाड़ी पर अचानक तेज़ धक्का पड़ा और अर्जुन बैलगाड़ी के लकड़ी वाले हिस्से से टकराने वाला था किंतु उससे पहले ही इन्द्रजीत ने उसे अपनी ओर खींच लिया और उसे बचा लिया। अर्जुन दंग था। ताकि उसे और क्षति ना पहुँचे इसलिए इन्द्रजीत ने उसे पकड़कर बैठने का निर्णय लिया। अर्जुन के गाल टमाटर जैसे लाल हो चुके थे।

"कुमार, क्या हुआ?" मधुबाला ने अर्जुन को छेड़ते हुए कहा और हँसने लगी.

"मधु!"

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