वृक्ष हैं इस पृथ्वी के प्राण,
इनके बगेर नही है जीवन,
शुद्ध हवा के स्त्रोत,
प्रदान करते हैं साँस,
हाँ,वही वृक्ष,
जो फल प्रदान करता है,
हाँ,वही वृक्ष,
जो फूल प्रदान करता है,
हाँ,वही वृक्ष,
जिसकी लकड़ी से फर्नीचर बनता है,
हाँ,वही वृक्ष,
जिसकी शाखाओं पर पंछियों का बसेरा होता है,
हाँ,वही वृक्ष,
जिसके कारण धरा पर वर्षा होती है,
इतना अनमोल खजाना,
हमने क्यों नहीं संग्रह किया?
खूब लूटा,
खूब नष्ट किया,
दो कौड़ी के लालच में,
छद्द्म विकास के नाम पर,
कितने ऑक्सिजन के कुओं को,
खत्म किया कुल्हाड़ी से,
विद्युत की आरी से,
ये किसने किया?
उस लक्कड़हारे को दण्ड दो,
जंगल से सूखी लकडियां चुनने वाला,
वो मेहनती लक्कड़हारा,
अब क्या इतना खुँखार हो चुका है?
जो निगल गया,
इन महान विस्तृत जंगलों को,
नहीं भाई नहीं,
इन जंगलों को निगला है,
रईसों के लालच ने,
जब माफिया ही लक्कड़हारा बन बैठा,
तो क्या भविष्य होगा वनों का?
एक-एक कर काटे जाएँगे,
शीतलता प्रदान करने वाले,
जिंदगी में जीवन भरने वाले वृक्ष,
हम निरंतर गतिमान रहेंगे,
प्रलयंकारी भविष्य की ओर,
अंधकार की ओर,
हम कब जागेंगे?
जब सम्पूर्ण धरा नष्ट हो जाएगी,
मानव,जीव-जंतु और वृक्ष समाप्त हो जाएँगे,
क्या कोई जागने को बचेगा भी?
तो आज ही जागो,
अभी जागो,
वृक्षों का जीवन बचाओ,
अपने भविष्य को सुनहरा बनाओ।
-अरुण कुमार कश्यप
29/08/2024
![](https://img.wattpad.com/cover/375491743-288-k269767.jpg)
आप पढ़ रहे हैं
सूरज फिर निकलेगा
Poetryहेलो दोस्तों!मेरा नाम अरुण कुमार कश्यप है।यह मेरा एक स्वरचित कविता-संग्रह है।इसके माध्यम से मैं आपके सामने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कविताएँ,गीत और गजल आदि स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। Copyright-सर्वाधिकार सुरक्षित 2024/अरु...