42-भगीरथ की गंगा

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पृथ्वी पर अमृत गंगा में बहता है,
हिमालय की चोटी से,
गंगोत्री के गौमुख से,
ये अमृत मैदानों में आता है,
अनंत जीवों और जीवन देता है,
हे!भगीरथी की गंगा,
तुम ऐसे ही उद्धार करो,
अपने पावन जल से,
मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करो,
पश्चिम में है यमुना नदी,
उसके पूर्व में हिंडन और काली,
काली के पूर्व में गंगा अमृतदायिनी,
सींचती है फसलों को,
भौम स्तर भरती है जल से,
भारत की जीवन रेखा है,
शिव की जटाओं से निकलने वाली गंगा,
आस्था का केंद्र है,
जीवन-मरण का सार समाहित,
तीज-त्यौहारों के घाटों पर मेलें,
आज भी सभ्यता और संस्कृति के रक्षक हैं,
अनेक तीर्थ स्थलों को जन्म देने वाली गंगा,
ऋषिकेश,हरिद्वार,हस्तिनापुर,गढ़,प्रयागराज और वाराणसी सहित,
अति प्राचीन नगरों की पालक है गंगा,
आज ये प्राचीन पवित्र गंगा,
एक विशाल खतरे से जूझ रही है,
कर रही है सामना खतरनाक प्रदूषण का,
गंदे नाले खत्म कर रहे इसकी जीवनदायी शक्ति को,
नष्ट कर रहे इसके पुनः जल शुद्धि के गुण को,
शताब्दियों तक सुरक्षित बर्तन में रखा रहने वाला जल,
आज खोने की कगार पर है,
अपने इस चमत्कारी गुण को,
सबके जीवन को पार लगाने वाली गंगा को,
आज फिर आवश्कता आन पड़ी,
एक ओर भगीरथ की,
जो उसका जीवन बचा सके।
-अरुण कुमार कश्यप
21/09/2024

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