52-आ गया बसंत

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बीत चुकी हैं सर्दियाँ,
मौसम में कुछ गर्माहट है,
वृक्षों से निकलने लगी हैं नव कोंपलें,
आम भी फूलों से बोराएँ हैं,
रंग-रंगीले कीट-पतंगें रस फूलों का चखने आएँ हैं,
मदमस्त हो भँवरें फूलों पर मँडराते हैं,
राग कोई नव गाते हैं,
दूर-दूर से मधुमक्खियाँ आकर मधु एकत्र करती हैं,
ले जातीं हैं अपनी कालोनियों में,
भरती हैं शहद के विशाल भंडार,
ये ऋतुराज है,
प्रकृति का श्रृंगार है,
चहुँओर सुंदरता ही सुंदरता,
नये-नये फूलों ने प्रकृति को रंग डाला,
रंग-बिरंगी तितलियों का नृत्य,
अनायास ही मन को मोह लेता है,
दूर-दूर तक फैले सरसों के खेत,
रंग पीले में रंगे हुए हैं,
जैसे किसी ने हल्दी की बौछार की हो,
कोयल की मीठी कूक से,
गूँज रहा है सारा जंगल,
गूँजायमान है एक मधुर राग,
आज प्रकृति जाग चुकी है,
दे रही है दर्शन अपने वास्तविक रूप के।
-अरुण कुमार कश्यप
24/09/2024

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