धूल कण,
क्या वजूद रखते हैं अपना?
उडते फिरते हैं हवा में,
बस इधर-उधर,
खाते फिरते हैं ठोंकरे दर-दर की,
पूरी तरह से निष्क्रिय,
पूरी तरह से निस्तेज,
प्रदूषण का एक कारक,
नही,धूल कण बेकार नहीं है,
ये निष्क्रिय भी नही है,
और नाही ये निस्तेज है,
ये वही कण हैं,
जिन्होनें इस समस्त ब्रह्मांड का निर्माण किया,
जिन्होनें हमारी पृथ्वी को जन्म दिया,
अनेक तारामंडलों को जन्म दिया,
अनेक आकाशगंगाओं को बनाया,
भूमि को जन्म दिया,
और मनुष्य उसी की भूमि पर बैठकर,
उसे ही अभिशाप बताता है,
प्रदूषण का कारक बताता है,
सोचता है,
धूल कण का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए,
अरे! निर्बुद्धि मानव,
तू उस कण को ही भूल गया,
जिसने इस ब्रह्मांड को रचने में,
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,
पहचान इस मूल तत्व की ताकत,
इस तत्व की भूमिका,
ये मात्र धूल कण ही नहीं,
बल्कि इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की माँ है।
-अरुण कुमार कश्यप
29/08/2024
आप पढ़ रहे हैं
सूरज फिर निकलेगा
Poesíaहेलो दोस्तों!मेरा नाम अरुण कुमार कश्यप है।यह मेरा एक स्वरचित कविता-संग्रह है।इसके माध्यम से मैं आपके सामने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कविताएँ,गीत और गजल आदि स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। Copyright-सर्वाधिकार सुरक्षित 2024/अरु...