35-जिंदगी की समझ

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जिंदगी है एक पहेली,
जिसे समझना आसान नहीं होता,
लोग रहते हैं खुद से ही अंजान,
सभी आयामों से परे,
बस खुद में ही डूबे रहते हैं,
फिर भी खुद से दूर,
यहाँ सुख कहाँ?
यहाँ दुख कहाँ?
दोनों जिंदगी के पहलु,
एक तराजू के पलड़े,
और बीच का काँटा,
भाग्य तथा भगवान,
मनुष्य जिंदगी को लेकर,
सदा भ्रमित रहता है,
खोजता है खुशियाँ कहीं दूर,
दूसरों में अपने दुखों का हल,
हास्यास्पद,खुद में डूबा इंसान,
खुद से दूर ढूँढता है,
खुशियाँ और अपने कष्टों का हल,
क्या होगा ऐसे इंसान का?
जो खुद को ही नही समझ सकता,
परेशानियों का हल नहीं खोज सकता,
हल यहीं है,
उन्हीं के मध्य,
खुद को ही आईना बनाईये,
अतीत में मग्न मत होईये,
लेकिन अतीत से शिक्षा अवश्य ग्रहण करिये,
यहीं से मिल सकता है,
आधी समस्याओं का समाधान,
मिल सकता है एक नया नजरिया,
जिंदगी को जीने,
और जिंदगी को समझने का,
यही वो एक रास्ता है,
जिसका अनुसरण हमारे पूर्वजों ने किया था।
-अरुण कुमार कश्यप

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