जल है दुनिया का वास्तविक खज़ाना,
शुद्ध जल अब खोजना पड़ता है,
जमिनों में ,
नदियों में,
जमीन खुद पी चुकी है,
अपने अंदर का जल,
नदियों से हम छीन चुके हैं उनकी पवित्रता,
हमारे लालच ने,
प्रकृति को सदा ठेंस पहुँचाई है,
हम कितने निष्ठुर हैं,
कितने नासमझ हैं,
प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ करते हैं,
मात्र अपनी जेब को भरने हेतु,
मात्र कुछ पूँजी हेतु,
पूँजी के हजार स्त्रोत हो सकते हैं,
लेकिन जल के स्तोत्र सिमित हैं,
शुद्ध जल माँग रही है,
समस्त संसार की,
आपूर्ति सदा कठिन रही है,
फिर भी दोहन अंधाधुंध रहा है,
क्योंकि मनुष्य बस स्वयं से ही प्रेम करता है,
या भविष्य से अनभिज्ञ रहना चाहता है,
अगर नहीं जागे तो,
भविष्य में मनुष्य की भावी पीढियाँ,
अपनी तृष्णा पेड़-पौधों की औंस से तृप्त करेगी,
हमें धीक्कारेगी,
हे भगवान!कौन थे वो अंधे इंसान,
जिन्होनें अपने लोभ के कारण,
हमारा भविष्य ही धूमिल कर डाला,
आज भी हम जाग सकते हैं,
अपनी गलतियों से सबक ले सकते हैं,
जल का संरक्षण और शुद्धता को,
बनाएं रखने का प्रण लेकर।
-अरुण कुमार कश्यप
27/08/2024
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सूरज फिर निकलेगा
Poetryहेलो दोस्तों!मेरा नाम अरुण कुमार कश्यप है।यह मेरा एक स्वरचित कविता-संग्रह है।इसके माध्यम से मैं आपके सामने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कविताएँ,गीत और गजल आदि स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। Copyright-सर्वाधिकार सुरक्षित 2024/अरु...