27-वास्तविक नागरिक

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भारत की पवित्र भूमि को नमन करते हैं,
ये धरा हमारी माँ है,
हम इसकी संतान हैं,
ये महान भारतवर्ष,
इस पर रहने वाला हरेक नागरिक,
भारत माँ की सेवा में लीन है,
कोई मजदूरी करके,
भारत माँ को मानव संसाधन प्रदान करता है,
कोई हाथों की दस्तकारी से,
भारत माँ के आकार को गढ़ता है,
कोई वनवासी,
वनों के दिये उपहारों से,
भारत माता की सेवा करता है,
एक गरीब अपने छोटे से व्यवसाय से,
लोगों को सुख पहुँचाने में,
अथक परिश्रम करता रहता है,
अल्प पूँजी से ही करता है प्रारंभ,
बहुत संतोषी होते हैं ये प्यारे नागरिक,
छोटे भूमिहीन कृषक भी,
लगे रहते हैं दिन-रात,
फसलों को पालने में,
भारत माता का अन्न से गोदाम भरने में,
अपने जीवन को सौंप देते हैं,
ये कृषक उन खेतों को,
जिनमें हल चलाया है,
इनके पूर्वजों ने,
आज सभी कर्मकार बांट जोह रहे हैं,
अपने नये सवेरे की,
गरीब,वंचित,शोषित,पिछड़ा और आदिवासी,
भारत माता का एक-एक मूलनिवासी,
बैठा है इसी इंतजार में,
कब बदलेगा उसका जीवन?
कब मिटेगा उसके जीवन से अँधियारा,
गुजर जाता है जीवन,
लेकिन भारत के वास्तविक नागरिक,
नही मिटा पाते अपने जीवन का अँधियारा।
-अरुण कुमार कश्यप
06/09/2024

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