धरती के सबसे बड़े स्तनपायी,
हैं वनों के अभिभावक,
स्थल के अजूबे हैं,
भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग है,
भारी भरकम हाथी,
सदा रहते हैं झुंड में,
अपने परिवार के साथ,
करते हैं अपने बच्चों की रक्षा,
खूँखार जानवरों से,
रखते हैं उन्हें झुंड के मध्य में,
ताकि कोई उन्हें छू भी ना सके,
हाथी बहुत बुद्धिमान होते हैं,
शताब्दियों तक संस्मरण रखते हैं,
उन पथों को,
जिनसे गुजरता आ रहा है,
उनका विशाल काफिला,
आज स्थल का ये शहंशाह,
बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है,
सिमट रहे हैं आवास,
बढ़ रही है घुसपैठ मानव की,
हो रहा है शिकार अपने विशाल दाँतों के कारण,
लग रहा है काला बाजार हाथीदाँत का,
चोरी-छिपे मिटाया जा रहा है जंगल की शान को,
आज अपनी चेतना खो बैठा है ये स्वार्थी मानव,
अंधा हो चुका है ये लोभी और विलासी इंसान,
उदार हृदयों का स्थान पूँजी ले चुकी है,
इस स्वार्थी मानव से हाथियों को बचाओं,
उसके लोभ से हाथियों को बचाओं,
आज सभी गज अपने कल को लेकर,
आत्मिक रूप से असंतुष्ट हैं।
-अरुण कुमार कश्यप
25/09/2024
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सूरज फिर निकलेगा
Poetryहेलो दोस्तों!मेरा नाम अरुण कुमार कश्यप है।यह मेरा एक स्वरचित कविता-संग्रह है।इसके माध्यम से मैं आपके सामने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कविताएँ,गीत और गजल आदि स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। Copyright-सर्वाधिकार सुरक्षित 2024/अरु...