33-ये प्रदूषण अभिशाप है

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स्वच्छ जल को निगल गया,
वायु भी जहरीली हो गई,
नदी बीमार हैं,
भौम जल गहराइयों में जा रहा है,
बाकी में विषैले तत्व आ पहुँचे हैं,
हाय रे मानव!ये तूने क्या किया?
पीने को पानी नही,
जीने को साँस नही,
ये सब देन है तेरी लोभी सोच की,
तेरी निरंतर बढ़ती महत्वाकांक्षाओं की,
ये कैसा विकास है,
जिसमें भविष्य अंधकार की गहराईयों में जाता ही जा रहा है,
आज लोग दम तोड़ रहे हैं,
केंसर-टीबी बिमारियों से,
हजारों असाध्य रोग मुँह खोले खड़े हैं,
मानव का भविष्य निगलने को,
इंसान कब जगेगा?
क्या स्वच्छ पानी का कोई विकल्प हो सकता है?
क्या स्वच्छ वायु का कोई विकल्प हो सकता है?
अगर नही तो ये दोहन क्यों?
नदियों का ये शोषण क्यों?
बंद करो ये नाले सारे,
जो ढ़ो रहे बिना उपचार के जहरीला पानी,
बना रहे नदियों को बीमार और जहरीला,
घुल रहा फेक्ट्रियों-कारख़ानों का बहाया जहर,
इस जहर के सेवन से,
मर रहे हैं जीव और जंतु,
मृदा अपनी उर्वरता को खो रही है,
वृक्ष असमय ही सूख रहे हैं,
बहुत भयावह है भविष्य की तस्वीर,
निरंतर चल रहे फेक्ट्रियाँ और कारखाने,
उगल रहे हैं जहरीला धुँआ,
इस धुंए ने वायु को दूषित कर डाला,
वर्षा अब अनियमित और निम्न हो चुकी है,
वृक्ष ना साँस ले पा रहे हैं ना दे पा रहे हैं,
एक पतली परत ने उनके पत्तों पर,
अपना ठिकाना बना लिया,
हे नादान मानव!अब तू साँस कैसे लेगा?
जब यहाँ साँस देने वाला खुद साँस का मोहताज है,
किये होंगे तूने अविष्कार बहुत,
अपने आनंद-विलास हेतु,
लेकिन सब बेकार हैं,
क्योंकि ये प्रदूषण एक अभिशाप है।
-अरुण कुमार कश्यप
18/09/2024


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