हवा है आवश्क,
सभी प्राणियों के लिए,
पौधों के लिए,
बिना वायु के जीवन संभव नहीं,
बिना वायु के उड़ान संभव नहीं,
आज ये आधुनिक युग है,
इसमें नित नये-नये आविष्कार जन्म ले रहे हैं,
आविष्कारों को आकार दे रहे हैं कारखाने,
इन कारख़ानों से निकलता है धुँआ,
जो वायु को दूषित करता है,
छीन लेता है हवा की शुद्धता,
आज शुद्ध हवा माँग है समय की,
जीवन और साँस प्रदान करने वाली,
स्वच्छंद विचरने वाली स्वच्छ हवा,
अब बन चुकी है जहर,
लील रही है प्राणों को,
छीन रही है प्रकृति का रंग-रूप,
क्षीण होती जा रही है,
खुद को शुद्ध करने की क्षमता,
बादल भी अब इंतजार कराते हैं,
ये कमज़ोर हवा,
शायद बादलों का बोझ ढोने में असमर्थ है,
इंसान अब जाग जा,
अपना लालच छोड़कर,
सृष्टि के प्राणों पर दया कर,
मत जहरीली बना इस प्राण दायिनी को,
अपनी महत्वाकांक्षाओं को थोड़ा लगाम दे,
हे मानव!सदा स्मरण रखना,
यदि जल और वायु हैं,
तो जीवन है वर्ना नही।
-अरुण कुमार कश्यप
05/09/2024
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सूरज फिर निकलेगा
Poetryहेलो दोस्तों!मेरा नाम अरुण कुमार कश्यप है।यह मेरा एक स्वरचित कविता-संग्रह है।इसके माध्यम से मैं आपके सामने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कविताएँ,गीत और गजल आदि स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। Copyright-सर्वाधिकार सुरक्षित 2024/अरु...