पृथ्वी का फेफड़ा है जंगल,
विभिन्न प्रकार के वृक्षों से आच्छादित,
ऑक्सिजन का भंडार हैं
कार्बन को सोखकर,
जीवनदायिनी वायु प्रदान करता है,
प्रदूषण का एक मुख्य शोषक है,
ईंधन का गोदाम है जंगल,
लाखों जीवों का घर,
जहाँ स्वतंत्र विचरते हैं जीव,
कोलाहल करते हैं पक्षी,
आदिवासियों का है निवास स्थान,
जंगल में मिल जुलकर रहता है,
मनुष्य और जानवर,
गढ़ते हैं प्रेम की एक नई परिभाषा,
जंगल जीवन रेखा हैं संसार की,
आज जीवन रेखा पर,
एक बहुत बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है,
एक त्रासदी से जूझ रहे हैं हमारे जंगल,
वृक्षों को काटा जा रहा है,
सिमटते जा रहे हैं हमारे जंगल,
फर्नीचरों का निर्माण,
आनंद विलास की इच्छा,
बड़े विस्तृत जंगलों को निगलती आ रही है,
मनुष्य अपनी विलासिता के कारण,
नष्ट कर रहा है प्राणदायिनी जंगलों को,
आधुनिक समय में भी मनुष्य,
अपनी बहुत सी आवश्यकताओं को,
पूरा करता है जंगल के माध्यम से,
जंगल की खदानों और कीमती वृक्षों से,
अंधाधुंध दोहन ने,
जंगल को तहस-नहस कर डाला है,
आज जंगल का भविष्य,
अंधकारमय प्रतीत होता है।
-अरुण कुमार कश्यप
06/09/2024
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सूरज फिर निकलेगा
Poetryहेलो दोस्तों!मेरा नाम अरुण कुमार कश्यप है।यह मेरा एक स्वरचित कविता-संग्रह है।इसके माध्यम से मैं आपके सामने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कविताएँ,गीत और गजल आदि स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। Copyright-सर्वाधिकार सुरक्षित 2024/अरु...