निशा का घना अंधेरा कमरे में फैल रहा था, जैसे ही जितिन ने अपने अलमारी का शीशा खोला, कमरे में रोशनी की एक किरण सी आ गई। शीशे में उसकी छवि एक तूफानी समुद्र की तरह दिखाई दे रही थी, जिस पर काली रात का साया पसरा हुआ था। उसने अपनी माँ की कोकिला नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिस पर काली मोतियों की माला हार की तरह लहरा रही थी।
जैसे ही उसने साड़ी के पल्लू को ठीक करने की कोशिश की, कमरे का दरवाजा तेजी से खुला और शशांक, उसके ससुर, कमरे में दाखिल हुए। उनके चेहरे पर गुस्से की लपटें उठ रही थीं, जैसे कोई ज्वालामुखी फूटने वाला हो। जितिन की साड़ी देखकर उनकी आँखें और लाल हो गईं। उन्हें जितिन का साड़ी पहनना बिल्कुल पसंद नहीं था, लेकिन जितिन ने उनकी ओर देखकर एक शरारत भरी मुस्कान दी और कहा, "पापा, अंदर आ जाओ।"
शशांक ने कमरे में कदम रखा और दरवाजा बंद कर दिया। जितिन ने उनकी ओर पीठ करके, शरारत भरे अंदाज में कहा, "मेरे ब्लाउज के पीछे का एक हुक बंद करना रह गया है। आप कृपया उसे बंद कर दीजिए।"
उनके शब्दों के साथ कमरे में सन्नाटा छा गया। शशांक की सांसें तेज हो गईं, उनके चेहरे पर नाराजगी और हैरानी दोनों झलक रही थी। परंपरा और आधुनिकता के बीच एक खींचतान उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। आखिरकार, एक लंबी सांस के साथ, वह जितिन के पास गए, उनके हाथ नाजुक कपड़े पर कांपते हुए।
जितिन की मुस्कराहट और चौड़ी हो गई, उसकी आँखों में एक चुनौती छिपी हुई थी।
हुक की क्लिक तनावपूर्ण माहौल में गूंजती हुई, जितिन और श्रीकांत के बीच अनकहे आदान-प्रदान में एक छोटा सा विराम चिह्न बन गई। जितिन, अभी भी पीछे मुड़कर, एक सांस छोड़ी जो उसे पता ही नहीं थी कि वह रोक रहा था, प्रत्याशा का बोझ हल्के से उठ रहा था।
एक चंचल हवा के साथ, जितिन घूम गया, रेशमी कपड़ा उसके चारों ओर एक तरल छाया की तरह घूमता रहा। उसकी आँखें श्रीकांत की आँखों से मिलीं, और उनमें एक शरारत भरी चमक चमकी। "थैंक्यू, पापा," उसने कहा, उसकी आवाज में शहद की मिठास घुल रही थी।
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Feminine
FantasyIt's never too late to learn something new. With the support of a loved one, anything is possible.