The Saree Soiree

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रात के 11:30 बज रहे थे। ठंडी हवा के झोंकों के साथ सियोन स्टेशन पर थोड़ी भीड़ थी। प्लेटफार्म पर हलकी गुलाबी रंग की साड़ी में जितिन खड़ा था, चेहरे पर हल्का मेकअप और गले में एक चमकदार नेकलेस। वो किसी भी तरह से असली औरत से कम नहीं लग रहा था।

थोड़ी देर में ठाणे जाने वाली स्लो ट्रेन आ गई। जितिन ने एक विंडो सीट पकड़ ली। ट्रेन में कुछ ही लोग थे - दो-चार आदमी और तीन औरतें। जितिन ने अपने मोबाइल में गाने लगाए और खिड़की से बाहर देखने लगा।

अगले स्टेशन कुर्ला पर एक कॉलेज स्टूडेंट लगने वाला लड़का जितिन के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गया। लड़के की नज़रें जितिन पर टिक गईं। वो मन ही मन सोचने लगा, "वाह! क्या आइटम है! अगर ये भाभी आज रात मिल जाए तो मज़ा आ जाए।"

जितिन ने लड़के पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने गानों में खोया रहा। लड़का भी ठाणे स्टेशन आने तक जितिन के सामने से नहीं हटा।

ठाणे स्टेशन आते ही जितिन ट्रेन से उतरा और एक ऑटो पकड़कर अपने घर की ओर चल दिया।

लड़का (मन में): अरे यार! ये तो चली गई। इतनी हसीन माल मिलते-मिलते रह गई।

जितिन (ऑटो में बैठते हुए): भैया, जल्दी चलिए प्लीज। मुझे घर पहुँचना है।

ऑटो वाला: जी मैडम, बिलकुल।

(कुछ देर बाद)

जितिन: भैया, यहीं रोक दीजिए। ये लीजिए पैसे।

ऑटो वाला: शुक्रिया मैडम।

(जितिन ऑटो से उतरकर अपने घर में चला जाता है।)

जितिन घर पहुंचा और अपनी पत्नी श्वेता को ट्रेन में हुई घटना बताई। श्वेता हंसते हुए बोली, "देखो, औरतों के साथ ये आम बात है। तुम रोज़ औरत बनकर शॉप पर जाओगे तो ऐसे ही होगा।"

जितिन ने कहा, "हाँ, क्योंकि वो शॉप मेरे औरत होने के कारण ही चलती है। लोग मुझे घूरने के बहाने चाय तो पीने आते हैं।" और जितिन हँसने लगा।

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